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________________ वर्ग ६ अध्ययन ३ - बंधुमती के साथ भोगोपभोग १२३ ********************************************************** यक्षायतन में आ कर क्रीड़ा कर रहे थे। उधर अर्जुन माली अपनी पत्नी बन्धुमती के साथ फूल संग्रह कर के उनमें से कुछ उत्तम फूल ले कर मुद्गरपाणि यक्ष की पूजा के लिए यक्षायतन की ओर जा रहा था। . तए णं ते छ गोहिल्ला पुरिसा अजुणयं मालागारं बंधुमईए भारियाए सद्धिं एजमाणं पासइ, पासित्ता अण्णमण्णं एवं वयासी-एस खलु देवाणुप्पिया! अज्जुणए मालागारे बंधुमईए भारियाए सद्धिं इहं हव्वमागच्छइ, तं सेयं खलु देवाणुप्पिया! अम्हं अजुणयं मालागारं अवओडय-बंधणयं करित्ता बंधुमईए भारियाए सद्धिं विउलाई भोगभोगाइं भुंजमाणाणं विहरित्तए' त्ति कटु एयमढे अण्णमण्णस्स पडिसुणेति, पडिसुणित्ता कवाडंतरेसु णिलुक्कंति णिच्चला णिप्फंदा तुसिणीया पच्छण्णा चिटुंति। ___ कठिन शब्दार्थ - अण्णमण्णं - परस्पर, अवओडय-बंधणयं - अवओटक बंधन - औंधी मुश्कियों से बांध कर, भुंजमाणाणं - भोगते हुए, कवाडंतरेसु - किवाडों के पीछे, णिलुक्कंति - छिप जाते हैं, णिच्चला - निश्चल - हलनचलन रोक कर, णिप्फंदा - निस्पंद - सांस की आवाज में मंदता लाते हुए, तुसिणीया - मौन रख कर, पच्छण्णा - प्रच्छन्न - गुप्त रूप से। भावार्थ - बन्धुमती भार्या के साथ आते हुए अर्जुन माली को देख कर उन छहों गोष्ठिक पुरुषों ने परस्पर विचार किया - 'हे मित्रो! यह अर्जुन माली अपनी पत्नी बंधुमती के साथ यहाँ आ रहा है। हम लोगों को उचित है कि इस अर्जुन माली को औंधी-मुश्कियों (दोनों हाथों को पीछ पीछे) से बलपूर्वक बाँध कर लुढ़का दें और फिर बन्धुमती के साथ खूब भोग भोगें।' इस प्रकार परस्पर विचार कर के वे छहों किवाड़ के पीछे छिप गये और सांस रोक कर निश्चल खड़े हो गये। बंधुमती के साथ भोगोपभोग .तए णं अज्जुणए मालागारे बंधुमईए भारियाए सद्धिं जेणेव मोग्गरपाणिजक्खस्स जक्खाययणे तेणेव उवागच्छइ, उवागच्छित्ता आलोए पणामं करेइ, Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004178
Book TitleAntkruddasha Sutra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNemichand Banthiya, Parasmal Chandaliya
PublisherAkhil Bharatiya Sudharm Jain Sanskruti Rakshak Sangh
Publication Year2007
Total Pages254
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_antkrutdasha
File Size48 MB
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