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गये। इसके बाद मूलश्री ने भगवान् से कहा कि - 'हे भगवन्! मैं* कृष्ण-वासुदेव की आज्ञा ले कर आपके पास दीक्षा लेना चाहती हूँ। भगवान् ने कहा 'हे देवानुप्रिय ! जैसा तुम्हें सुख हो,
वैसा करो । '
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वर्ग ५ अध्ययन - १०- मूलश्री और मूलदत्ता
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इसके बाद मूलश्री ने पद्मावती के समान दीक्षा ले कर तप-संयम की आराधना कर के सिद्ध पद को प्राप्त किया । *
मूलश्री के समान मूलदत्ता' का भी सारा वृत्तान्त जानना चाहिए। यह शाम्बकुमार की दूसरी रानी थी।
कर दीक्षा ली।.
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विवेचन पाँच वर्गों में केवल एक परिवार के ५१ महान् पुरुषों के जीवन चरित्रों का परिचय पढ़ने में आया । इस अवसर्पिणी काल में यादव वंश अपने आप में एक गौरवशाली वंश रहा है, जिसकी समानता नहीं मिलती। इस पर सोने में सुगंध यह है कि इन एकावन महान् आत्माओं की नैया के खिवैया भी यदुकुलतिलक भगवान् अरिष्टनेमि हैं जो समुद्रविजय एवं शिवानंदा के लाड़ले हैं । अन्तकृतदशा के पाँचों वर्गों के अतिरिक्त भी आगमों में यत्र तत्र यादव वंश के महान आत्म-सुभटों का विपुल परिचय भी उपलब्ध है। इनके गौरवमय जीवन से जितना कुछ सीखा जाय, कम ही है।
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शाम्बकुमार
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॥ पांचवें वर्ग के ६ से १० अध्ययन समाप्त ॥
॥ इति पांचवां वर्ग समाप्त ॥
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ने पहले ही दीक्षा ले ली थी। इसलिए मूलश्री ने अपने श्वशुर कृष्ण वासुदेव की आज्ञा ले
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