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________________ छडो वग्गो - छठा वर्ग अध्ययन - परिचय (६१) जइ णं भंते! छ?मस्स उक्खेवओ। णवरं सोलस अज्झयणा पण्णत्ता, तं जहा - मकाई किंकमे चेव, मोग्गरपाणी य कासवे। खेमए धितिधरे चेव, केलासे हरिचंदणे॥१॥ . वारत्त-सुदंसण-पुण्णभद्द, सुमणभद्द-सुपइटे मेहे। अइमुत्ते य अलक्खे, अज्झयणाणं तु सोलसयं ॥२॥ भावार्थ - श्री जम्बू स्वामी ने श्री सुधर्मा स्वामी से पूछा - 'हे भगवन्! श्रमण-भगवान् महावीर स्वामी ने पांचवें वर्ग के जो भाव कहे, वे मैंने आपसे सुने। इसके बाद श्रमण-भगवान् महावीर स्वामी ने छठे वर्ग के क्या भाव कहे हैं, सो कृपा कर कहिये।' श्री सुधर्मा स्वामी ने कहा - 'हे जम्बू! श्रमण-भगवान् महावीर स्वामी ने छठे वर्ग में सोलह अध्ययन कहे हैं। वे इस प्रकार हैं - १. मकाई २. किंकम ३. मुद्गरपाणि ४. काश्यप ५. क्षेमक ६. धृतिधर ७. कैलाश ८. हरिचन्दन ६. वारत्त १०. सुदर्शन ११ पूर्णभद्र १२. सुमनोभद्र १३. सुप्रतिष्ठ १४. मेघ . १५. अतिमुक्त और १६. अलक्ष्य। ये सोलह अध्ययन हैं। . पढमं अज्झयणं - प्रथम अध्ययन जइ णं भंते! सोलस अज्झयणा पण्णत्ता, पढमस्स अज्झयणस्स के अढे पण्णत्ते? भावार्थ - 'हे भगवन्! श्रमण भगवान् महावीर स्वामी ने इन सोलह अध्ययनों में से प्रथम अध्ययन में क्या भाव कहे हैं?' Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004178
Book TitleAntkruddasha Sutra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNemichand Banthiya, Parasmal Chandaliya
PublisherAkhil Bharatiya Sudharm Jain Sanskruti Rakshak Sangh
Publication Year2007
Total Pages254
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_antkrutdasha
File Size48 MB
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