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________________ वर्ग ३ अध्ययन ८ - सोमिल शव की दुर्दशा ८५ 來來來來來來來來來來來來來來來來來來來來來來來來來來华中李**************************** भावार्थ - सूर्योदय होते ही सोमिल ब्राह्मण ने अपने मन में सोचा कि - ‘कृष्ण-वासुदेव भगवान् के चरण-वन्दन के लिए गये हैं। भगवान् तो सर्वज्ञ हैं। उनसे कोई बात छिपी नहीं है। भगवान् ने गजसुकुमाल की मृत्यु सम्बन्धी सारी बात जान ली होगी, पूर्ण रूप से जान ली होगी और कृष्ण-वासुदेव से कह दी होगी। इसे जान कर कृष्ण-वासुदेव न जाने मुझे किस कुमौत से मारेंगे? ऐसे विचार से भयभीत हो कर सोमिल ने भाग जाने का विचार किया। फिर उसने सोचा कि कृष्ण-वासुदेव तो राजमार्ग से ही आवेंगे। इसलिए मुझे उचित है कि मैं गली के रास्ते चल कर द्वारिका नगरी से निकल भागूं।' ऐसा विचार कर वह अपने घर से निकला और गली के रास्ते भागते हुए जाने लगा। ___इधर कृष्ण-वासुदेव भी अपने सहोदर लघुभ्राता गजसुकुमाल अनगार की अकाल-मृत्यु के शोक से व्याकुल होने के कारण राजमार्ग छोड़ कर गली के रास्ते से ही आ रहे थे, जिससे संयोगवश वह सोमिल ब्राह्मण, कृष्ण-वासुदेव के सामने ही आ निकला। . सोमिल की मौत । तए णं से सोमिले माहणे कण्हं वासुदेवं सहसा पासित्ता भीए ठियए चेव ठिइभेएणं कालं करेइ, करित्ता धरणितलंसि सव्वंगेहिं धसत्ति सण्णिवडिए। कठिन शब्दार्थ - धरणितलंसि - पृथ्वी तल पर, सव्वंगेहिं - सर्वांग, धसत्ति - धस शब्द करते हुए, सण्णिवडिए - गिर पड़ा। भावार्थ - उस समय वह सोमिल ब्राह्मण, कृष्ण-वासुदेव को सामने आते हुए देखें कर बहुत भयभीत हुआ और जहाँ का तहाँ खड़ा रह गया। आयु-क्षय हो जाने से वह खड़ा-खड़ा ही मृत्यु को प्राप्त हो गया, जिससे उसका मृत शरीर धड़ाम से धरती पर गिर पड़ा। .. सोमिल शव की दुर्दशा . तए णं से कण्हे वासुदेवे सोमिलं माहणं पासइ, पासित्ता एवं वयासी - "एस णं भो देवाणुप्पिया! से सोमिले माहणे अपत्थियपत्थिए जाव परिवज्जिए। Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004178
Book TitleAntkruddasha Sutra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNemichand Banthiya, Parasmal Chandaliya
PublisherAkhil Bharatiya Sudharm Jain Sanskruti Rakshak Sangh
Publication Year2007
Total Pages254
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_antkrutdasha
File Size48 MB
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