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अन्तकृतदशा सूत्र ****************************來來來來來來來來來來來來來來來來來來來來來來來來來來來來來來來水**
भावार्थ - यह सुन कर कृष्ण-वासुदेव ने भगवान् से फिर पूछा - "हे भगवन्! मैं उस पुरुष को किस प्रकार जान सकूँगा?" भगवान् ने कहा - 'हे कृष्ण! द्वारिका नगरी में प्रवेश करते हुए तुम्हें देखते ही जो पुरुष आयु की स्थिति के क्षय से वहीं पर खड़ा-खड़ा ही मृत्यु को प्राप्त हो जाय, उसी पुरुष को तुम जान लेना कि यह वही पुरुष है।'
कृष्ण और सोमिल की भेंट -
(४१) . तए णं से कण्हे वासुदेवे अरहं अरिट्टणेमिं वंदइ णमंसइ, वंदित्ता णमंसित्ता .. जेणेव आभिसेयं हत्थिरयणं तेणेव उवागच्छइ, उवागच्छित्ता हत्थिं दुरूहइ, दुरूहित्ता जेणेव बारवई णयरी जेणेव सए गिहे तेणेव पहारेत्थ गमणाए।
भावार्थ - तदनन्तर कृष्ण वासुदेव ने अर्हत् अरिष्टनेमि को वंदन नमस्कार किया, वंदन नमस्कार करके जहां अभिषेक योग्य हस्ति रत्न था, वहां पहुंच कर उस हाथी पर आरूढ हुए
और द्वारिका नगरी में अपना राजप्रासाद का उस ओर चल पड़े। , ____तए णं तस्स सोमिलस्स माहणस्स कल्लं जाव जलंते अयमेयारूवे अज्झथिए जाव समुप्पण्णे। एवं खलु कण्हे वासुदेवे अरहं अरिट्ठणेमिं पायवंदए णिग्गए, तं णायमेयं अरहया विण्णायमेयं अरहया सुयमेयं अरहया सिट्टमेयं अरहया भविस्सइ कण्हस्स वासुदेवस्स तं ण णज्जइ णं कण्हे वासुदेवे ममं केणवि कुमारेणं मारिस्सइ त्ति कटु भीए सयाओ गिहाओ पडिणिक्खमइ, पडिणिक्खमित्ता कण्हस्स वासुदेवस्स बारवई णयरिं अणुप्पविसमाणस्स पुरओ सपक्खिं सपडिदिसिं हव्वमागए।
कठिन शब्दार्थ - णायमेयं - जानी हुई, विण्णायमेयं - विज्ञात - विशेष रूप से जानी हुई, सुयमेयं .- सुनी हुई, सिट्ठमेयं - स्पष्ट रूप से समझी हुई, केणवि कुमारेणं - किस कुमौत से, मारिस्सइ - मारेंगे, पुरओ - सामने से ही, सपक्खिं - सपक्ष - समान पार्श्वतया, सपडिदिसिं - सप्रतिदिक् ।
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