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________________ ७७ वर्ग ३ अध्ययन ८ - पांच दिव्य प्रकट ******************************************************************** शंका - भगवान् अरिष्टनेमि स्वामी ने गजसुकुमालजी को आज्ञा ही क्यों दी? वे तो केवलज्ञानी थे। समाधान - केवलज्ञानी होने के कारण भगवान् जानते थे कि गजसुकुमाल की मुक्ति इसी रूप में होने वाली है। गोशालक-उपसर्ग में भगवान महावीर स्वामी ने स्पष्ट आदेश फरमाया था कि कोई भी गोशालक से प्रश्नोत्तर नहीं करे, पर सर्वानुभूति एवं सुनक्षत्र मुनिराज से नहीं रहा गया। उन्होंने गोशालक को समझाया फलतः वे तेजोलेश्या के निसर्ग से भस्मीभूत हो गए। भवितव्यता ज्ञानियों के दृष्टिपथ में होती है, उसे अन्यथा करना तो स्वयं अपने ज्ञान में ही विसंवादन होने जैसा होने से असंभव है। गजसुकुमालजी की आयुष्य पर्याय भी पूरी होने को थी। अतः पूर्ण ज्ञानी प्रभु की प्रवृत्ति में मंगल ही रहा हुआ समझना चाहिए। पांच दिव्य प्रकट तत्थ णं अहासंणिहिएहिं देवेहिं सम्मं आराहिए त्ति कटु दिव्वे सुरभिगंधोदए वुढे, दसद्धवण्णे कुसुमे णिवाडिए चेलुक्खेवे कए दिव्वे य गीयगंधव्वणिणाए कए यावि होत्था। कठिन शब्दार्थ - अहासंणिहिएहिं - समीपवर्ती, देवेहिं - देवों ने, आराहिए - • आराधना की है, दिव्वे - दिव्य, सुरभिगंधोदए - सुगंधित अचित्त जल की, वुढे - वर्षा की, दसद्धवण्णे - दस के आधे रंग के यानी पांच रंगों के, कुसुमे - फूलों का, णिवाडिए - बिखराव किया, चेलुक्खेवे कए - सुंदर सुंदर ध्वजा पताकाएं फहराई, गीयगंधव्वणिणाए कए- गीत गंधों से आकाश गुंजा दिया, (साजों के साथ गाया गया गीत गंधर्व है बिना साज के गाया गया गीत है). भावार्थ - उस समय वहाँ समीपवर्ती देवों ने - 'इन गजसुकुमाल अनगार ने चारित्र का सम्यक् आराधन किया है' - ऐसा विचार कर अपनी वैक्रिय शक्ति के द्वारा दिव्य सुगन्धित अचित्त जल और पांच वर्षों के अचित्त फूलों एवं वस्त्रों की वर्षा की और दिव्य मधुर गायन एवं वाद्यों की ध्वनि से आकाश को व्याप्त कर दिया। विवेचन - शंका - कृष्ण महाराज को इन दिव्य संकेतों से कोई ज्ञान नहीं हुआ कि मेरे भाई का मोक्ष हो गया है? Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004178
Book TitleAntkruddasha Sutra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNemichand Banthiya, Parasmal Chandaliya
PublisherAkhil Bharatiya Sudharm Jain Sanskruti Rakshak Sangh
Publication Year2007
Total Pages254
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_antkrutdasha
File Size48 MB
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