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________________ ७८ अन्तकृतदशा सूत्र *** *京*来来来来来来来来来来来来来来*************** ********** - समाधान - भगवान् के शासन में मुक्ति होती ही रहती थी, गजसुकुमाल अनगार के लिए ऐसा सोचना अप्रत्याशित ही था। प्रश्न - निर्वाणोपरांत देवों ने ये उपक्रम किए तो जब सिर पर अंगारे धधक रहे थे तब देवों ने सहायता क्यों नहीं की? उत्तर - उस समय देवों का उपयोग नहीं लगा था। प्रश्न - क्या श्री कृष्ण महाराज को इन दैविक कार्यक्रमों से गजसुकुमालजी के निर्वाण का पता नहीं लगा? . .. उत्तर - उस समय देवों द्वारा किये गये जल-पुष्प वृष्टि आदि सामान्य समझे जाते थे क्योंकि भगवान् के कई अंतेवासी केवलज्ञान, निर्वाण आदि प्राप्त करते रहते थे। फिर यह भी कोई नियम नहीं कि हर महापुरुष को केवलज्ञान होने पर या निर्वाण होने पर देवों द्वारा महोत्सव हो ही, यह तो देवों का उपयोग लग गया, अतः उन्होंने ये कार्य कर लिए अन्यथा उपयोग नहीं लगता तो ये कार्यक्रम नहीं भी होते। राज-कार्य में व्यस्त कृष्ण महाराज ने कदाचित् ये देवकृत । शब्दादि सुने भी होंगे तब भी यह तो वे कैसे सोच सकते थे कि गजसुकुमालजी का निर्वाण हो गया है, क्योंकि इतनी जल्दी गजसुकुमालजी को केवलज्ञान या मुक्ति होने की तो संभावना ही नहीं रखी जाती थी। कृष्ण वासुदेव का भगवान् की सेवा में जाना (४०) तए णं से कण्हे वासुदेवे कल्लं पाउप्पभायाए जाव जलते ण्हाए जाव विभूसिए हत्थिक्खंधवरगए सकोरंटमल्लदामेणं छत्तेणं धरिज्जमाणेणं सेयवरचामराहिं उद्धव्वमाणीहिं महया-भड-चडगर-पहकर-वंदपरिक्खित्ते बारवई णयरी मज्झमझेणं जेणेव अरहा अरिटुणेमी तेणेव पहारेत्थ गमणाए। कठिन शब्दार्थ - कल्लं पाउप्पभायाए - दूसरे दिन प्रभात होने पर, महया - महान्, भड-चडगर-पहकर-वंदपरिक्खित्ते - बहुसंख्यक सुभट आदि के वृंद से घिरे हुए, पहारेत्थ गमणाए - जाने के लिए रवाना होना। भावार्थ - गजसुकुमाल की दीक्षा के दूसरे दिन सूर्योदय हो जाने पर स्नानादि कर के Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004178
Book TitleAntkruddasha Sutra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNemichand Banthiya, Parasmal Chandaliya
PublisherAkhil Bharatiya Sudharm Jain Sanskruti Rakshak Sangh
Publication Year2007
Total Pages254
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_antkrutdasha
File Size48 MB
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