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________________ उपासक प्रतिमाएं अत्थि माया, अत्थि पिया, अत्थि अरहंता, अस्थि चक्कवट्टी, अत्थि बलदेवा, अत्थि वासुदेवा, अत्थि सुकडदुक्कडाणं कम्माणं फलवित्तिविसेसे, सुचिण्णा कम्मा सुचिण्णा फला भवंति, दुचिण्णा कम्मा दुचिण्णा फला भवंति, सफले कल्लाणपावए पच्चायंति जीवा, अत्थि णेरइया जाव अत्थि देवा, अत्थि सिद्धी, से एवंवाई एवंपणे एवंदिट्ठीछंदरागमइणिविट्टे यावि भवइ । से भवइ महिच्छे जावं उत्तरगामिए णेरइए सुक्कपक्खिए आगमेस्साणं सुलभबोहिए यावि भवइ । से तं किरियावाई ॥ १४ ॥ अकिरियवाई कठिन शब्दार्थ अक्रियवादी, णाहियवाई - नास्तिकवादी, हियपणे नास्तिकप्रज्ञ, णाहियदिट्ठी - नास्तिकदृष्टि, सम्मावाई - सम्यक्वादी, णितियावाई - नित्यवादी, संति परलोगवाई - सत्परलोकवादी, पिया पिता, माया माता, णिरया - नरक, णेरइया - नारकीय जीव, सुकडदुक्कडाणं सुकृतदुष्कृत क पुण्यों एवं पापों का, सुचिण्णा श्रेष्ठ रूप में आचरित, दुचिण्णा दुश्चीर्ण- दूषित रूप में आचरित, अफले - फल रहित, कल्लाणपावए पुण्य-पापात्मक, पच्चायंति - जन्मान्तर पाते हैं, एवंवाई - ऐसा कहने वाले, एवंपण्णे- ऐसा जानने वाले, एवंदिट्ठी - ऐसी दष्टि रखने वाले, एवंछंदरागमइणिविट्ठे - अपने मत में अत्यंत आसक्ति रखने वाले, महिच्छे - महत्त्वाकांक्षी, महारंभे - घोर हिंसा आदि आरंभ-समारंभ युक्त, अहम्मिए - अधार्मिक श्रुत चारित्रधर्म परिपंथी, अहम्माणुए अधर्मानुगः - अधार्मिक कार्यों का अनुसरण करने वाला, अहम्मसेवी - अधर्मसेवी पापात्मक कृत्यों में रत, अहम्मिट्ठे - अधर्मिष्ठ - अधर्म में अतिनिमंग्न, अहमक्खाई अधर्मप्ररूपक, अहम्मरागी अधर्म में अनुरागयुक्त, अहम्मपलोई - अधर्मप्रलोक घोर अधार्मिक दृष्टियुक्त, अहम्मजीवी - अधर्मजीवी अधर्ममय आजीविका से निर्वाह करने वाला, अहम्मपलज्जणे - अधर्मप्ररञ्जन - अधर्म में प्रसन्नता अनुभव करने वाला, अहम्मसीलसमुदायारे धर्म एवं शील रहित आचार में संलग्न, वित्तिं - वृत्ति - आजीविका, कप्पेमाणे - प्रकल्पित ( आचरित) करता हुआ, हणहनन करो, मारो, छिंद - छेदन करो, भिंद - विदीर्ण करो, विकत्तए मार-काट करने वाला, लोहियपाणी - रुधिर लिप्त हाथों वाला, चंडे - प्रचण्ड क्रोधी, रुद्दे - अति भयावह, खुद्दे - क्षुद्र - जीव- पीड़ा आदि निम्न कोटि के कर्म करने वाला, असमिक्खियकारी बिना विचारे करने वाला, साहस्सिए - अनुचित कार्यों में बल प्रयोक्ता, उक्कंचण उत्कोच - घूस लेने वाला ( रिश्वतखोर), वंचण - ठगाई करने वाला, माइ - कपटी, छली, Jain Education International 1 - - - - - - For Personal & Private Use Only - - ५३ - - www.jainelibrary.org
SR No.004177
Book TitleTrini Ched Sutrani
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNemichand Banthiya, Parasmal Chandaliya
PublisherAkhil Bharatiya Sudharm Jain Sanskruti Rakshak Sangh
Publication Year2007
Total Pages538
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, agam_bruhatkalpa, agam_vyavahara, & agam_dashashrutaskandh
File Size11 MB
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