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चित्तसमाधि के दश स्थान
ओहिणाणे वा से असमुप्पण्णपुव्वे समुप्पज्जेज्जा ओहिणा लोयं जाणित्तए ॥ ६ ॥ ओहिदंसणे वा से असमुप्पण्णपुव्वे समुप्पज्जेज्जा ओहिणा लोयं पासित्तए ॥ ७ ॥ मणपज्जवणाणे वा से असमुप्पण्णपुव्वे समुप्पज्जेज्जा अंतो मणुस्सक्खित्तेसु अड्डाइज्जेसु दीवसमुद्देसु सण्णीणं पंचिंदियाणं पज्जत्तगाणं मणोगए भावे जाणित्तए ॥८ ॥ केवलणाणे वा से असमुप्पण्णपुव्वे समुप्पज्जेज्जा केवलकप्पं लो (गं )यालोयं जाणत् ॥ ९ ॥
केवलदंसणे वा से असमुप्पण्णपुव्वे समुप्पज्जेज्जा केवलकप्पं लोयालोयं पासित्तए ॥१०॥
केवलमरणे वा से असमुप्पण्णपुव्वे समुप्पज्जेज्जा सव्वदुक्खपही हा ]णाए ॥ ११॥ ओयं चित्तं समादाय, झाणं समुप्पज्जइ ।
धम्मे ठिओ अविमणो, णिव्वाणमभिगच्छइ ॥ १२ ॥ ण इमं चित्तं समादाय, भुज्जो लोयंसि जाय । अप्पणी उत्तमं ठाणं, सण्णिणाणेण जाणइ ॥ १३ ॥ अहातच्चं तु सुमिणं, खिप्पं पासेइ संवुडे । सव्वं वा ओहं तरइ, दुक्खदोय विमुच्चइ ॥ १४ ॥ पंताइं भयमाणस्स, विवित्तं सयणासणं । अप्पाहारस्स दंतस्स, देवा दंसेंति ताइणो ॥ १५ ॥ सव्वकामविरत्तस्स, खमणो भयभेरवं । तओ से ओही भवइ, संजयस्स तवस्सिणो ॥ १६ ॥ तवसा अवहट्टुलेस्सस्स, दंसणं परिसुज्झइ । उड्ड अहे तिरियं च सव्वं समणुपस्सइ ॥१७॥ सुसमाहियलेस्सस्स, अवितक़स्स भिक्खुणो । सव्वओ विप्पमुक्कस्स, आया जाणाइ पज्जवे ॥ १८ ॥ जया से णाणावरणं, सव्वं होइ खयं गयं । तओ लोगमलोगं च, जिणो जाणइ केवली ॥ १९ ॥
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