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दशाश्रुतस्कन्ध सूत्र - पंचम दशा Araktarrakakakakkkkkkkkkkkkkkkkkkkkkkkkkkkkkkkkkkkkkkkkkkkkkkk
जया से दरिसणावरणं, सव्वं होइ खयं गयं। तओ लोगमलोगं च, जिणो पासइ केवली॥२०॥ पडिमाए विसुद्धाए, मोहणिज्जं खयं ग(यं )ए। असेसं लोगमलोगं च, पासेइ सुसमाहिए॥२१॥ जहा मत्थय-सूईए, हताए हम्मइ तले। एवं कम्माणि हम्मंति, मोहणिज्जे खयं गए॥२२॥ सेणावइंमि णिहए, जहा सेणा पणस्सइ। एवं कम्माणि णस्संति, मोहणिजे खयं गए॥२३॥ धूमहीणो जहा अग्गी, खीयइ से णिरिंधणे। एवं कम्माणि खीयंति, मोहणिजे खयं गए॥२४॥ सुक्तमूले जहा रुक्खे, सिंचमाणे ण रोहइ। . एवं कम्मा ण रोहंति, मोहणिजे खयं गए॥२५॥ जहा दड्डाणं बीयाणं, ण जायंति पुणंकुरा। कम्मबीएसु दड्ढेसु, ण जायंति भवंकुरा ॥२६॥ चिच्चा ओरालियं बोदिं, णाम गो(त्तं )यं च केवली। . ... आउयं वेयणिज्जं च; छित्ता भवइ णीरए ॥२७॥ एवं अभिसमागम्म, चित्तमादाय आउसो। सेणिसुद्धिमुवागम्म, आया सुद्धि (सोहि) मुवागइ॥२८॥त्ति बेमि॥
॥ पंचमा दसा समत्ता॥५॥ कठिन शब्दार्थ - चित्तसमाहिठाणा - चित्तसमाधि के स्थान, वाणियगामे - वाणिज्यग्राम में, णयर - नगर, उत्तरपुरस्थिमे - उत्तरपूर्वी - ईशानकोण में, दिसीभाए - दिशाभाग में, पुढवीसिलापट्टए - पृथ्वीशिलापट्टक पर, पडिगया - प्रतिगत - लौट गई, णिग्गंथा - निकली (अपने-अपने स्थान से निकल कर आई), आमंतित्ता - आमंत्रित - संबोधित कर, उच्चार-पासवण-खेल-जल्ल-सिंघाण-पारिठावणिया-समियाणं - मल
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