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________________ दशाश्रुतस्कन्ध सूत्र - चतुर्थ दशा Akkkkkkkkkkkkkkkkkkkkkkkkkkkkkkkkkkkkkkkkkkkkkkkkkkkkkkkkkkkkk ३० सौष्ठव इत्यादि प्रभावक व्यक्तित्व के हेतु हैं। यहाँ यह ज्ञातव्य है, आचार्य अपने आपको ऐसा बनाने का (अपनी ओर से) ऐसा कोई प्रयास नहीं करते किन्तु आचार्य के मनोनयन, चयन में इन सब बातों पर गौर किया जाता है। विद्या, चारित्र्य, शील आदि के साथ-साथ दैहिक वैशिष्ट्य भी प्रभावोत्पादकता का अवश्य हेतु है, क्योंकि सबसे पहले लोगों की दृष्टि देह पर जाती है। ___जीवन में भाषा-व्यवहार, वाक्प्रयोग या वचन का बहुत महत्त्व है। भाषा ही व्यक्ति के भावों की अभिव्यक्ति का मुख्य माध्यम है। वह समीचीन, संगत और सुप्रयुक्त हो, यह वांछित है। कहा है - चरित है मूल्य जीवन का, . वचन प्रतिबिम्ब है मन का। सुयश है आयु सज्जन की, सुजनता है प्रभा धन की॥ इस पद्य की दूसरी पंक्ति में जैसा कहा गया है, वचन मनोभावना का, मानसिकताः का प्रतिबिम्ब है। उच्च, गंभीर, महत्त्वपूर्ण विचारों को व्यक्त करने हेतु तनुरूप सुंदर, सुगम, उपयोगी शब्दों का प्रयोग होना अपेक्षित है। आचार्य चतुर्विध धर्म संघ के धार्मिक अधिनायक होते हैं, वे तीर्थंकर देव के प्रतिनिधि रूप हैं, इसी कारण नमस्कार सूत्र में अहँतों तथा सिद्धों के पश्चात् उन्हीं का समावेश है। वे सर्वज्ञोपदिष्ट धर्म तत्त्व के अधिवक्ता और उद्बोधक होते हैं, अत एव उनके जीवन में वाणी या वचन का बहुत महत्त्व है। आदेयता, मधुरता, अनिमितता एवं असंदिग्धता - ये उनकी वाणी की विशेषताएँ हैं। 'आ' उपसर्ग, 'दा' धातु एवं 'यत्' प्रत्यय के योग से आदेय शब्द बनता है। "आदातुं योग्यमादेयम्" आदेय का अर्थ 'ग्रहण करने योग्य' है। आचार्य अपनी वाणी में ऐसे श्रद्धातिशययुक्त, युक्तिपूर्ण, तर्कसंगत वचनों का उपयोग करते हैं, जो श्रोताओं को ग्रहण करने योग्य प्रतीत होते हैं। क्योंकि उनमें विसंगति नहीं होती। साथ ही साथ उनके वचनों में मधुरता रहती है। वे जो भी कहते है, मधुरता के साथ कहते हैं, जिससे उनके वचन अप्रिय नहीं लगते। आचार्य की वाणी सार्वजनीन होती है। व्यक्ति विशेष, दल विशेष के प्रति उसमें कोई पक्ष नहीं होता। वे तत्त्वद्रष्टा होते हैं। इसलिए उनके वचनों में संदेह का समावेश नहीं होता। एक जैन साधु के जीवन का मूल आधार सर्वज्ञ निरूपित आगमश्रुत हैं। आगमों में उन Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004177
Book TitleTrini Ched Sutrani
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNemichand Banthiya, Parasmal Chandaliya
PublisherAkhil Bharatiya Sudharm Jain Sanskruti Rakshak Sangh
Publication Year2007
Total Pages538
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, agam_bruhatkalpa, agam_vyavahara, & agam_dashashrutaskandh
File Size11 MB
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