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________________ - व्यवहार सूत्र - दशम उद्देशक ★★★★★★★★★★★★★★★★★★★★★★★★★★★★★★★★★ २०६ ★★★★★★★★★ ३०९. शैक्ष की वैयावृत्य करता हुआ श्रमण-निर्ग्रन्थ कर्मों की अत्यन्त निर्जरा करता है, अत्यन्त पर्यवसान-नाश करता है। ३१०. रोग-क्षीण, तप-क्षीण साधु की वैयावृत्य करता हुआ श्रमण-निर्ग्रन्थ कर्मों की अत्यन्त निर्जरा करता है, अत्यन्त पर्यवसान - नाश करता है। ___ ३११. साधर्मिक की वैयावृत्य करता हुआ श्रमण-निर्ग्रन्थ कर्मों की अत्यन्त निर्जरा करता है, अत्यन्त पर्यवसान-नाश करता है। ३१२. कुल की वैयावृत्य करता हुआ श्रमण-निर्ग्रन्थ कर्मों की अत्यन्त निर्जरा करता है, अत्यन्त पर्यवसान - नाश करता है। - ३१३. गण की वैयावृत्य करता हुआ श्रमण-निर्ग्रन्थ कर्मों की अत्यन्त निर्जरा करता है, अत्यन्त पर्यवसान-नाश करता है। ३१४. संघ की वैयावृत्य करता हुआ श्रमण-निर्ग्रन्थ कर्मों की अत्यन्त निर्जरा करता है, अत्यन्त पर्यवसान - नाश करता है। विवेचन - इन सूत्रों में आचार्य, उपाध्याय आदि की वैयावृत्य - सेवा-परिचर्या का महान् फल निरूपित हुआ है। ____ तन्मयता, रुचि एवं श्रद्धापूर्वक सेवा करना बहुत कठिन कार्य है। वैसा करने में धीरता, स्थिरता और गंभीरता की बड़ी आवश्यकता होती है। - आचार्य, उपाध्याय एवं स्थविर संघ में माननीय आदरणीय और श्रद्धेय होते हैं। इनका सम्मान करना, सेवा करना प्रत्येक साधु का कर्तव्य है। इससे धर्म की प्रभावना होती है तथा धर्म संघ की प्रतिष्ठा बढती है। वैयावृत्य करने वाले की आत्मा में विनयशीलता, ऋजुता एवं मृदुता आदि गुण वृद्धिंगत होते हैं। कर्मक्षय की दृष्टि से तपस्या का बहुत महत्त्व है। जो मुनि तपस्या करते हैं, अनशन आदि के परित्याग से उनकी दैहिक शक्ति कम हो जाती है, वे परिश्रान्त होते हैं। अपने दैनन्दिन कार्य करने में उन्हें कठिनाई होती है। अत: संघवर्ती साधु का यह कर्तव्य है कि वह उसकी सेवा-परिचर्या करे। इससे तपस्वी को अनुकूलता रहती है तथा सेवा करने वाले के आत्म-परिणाम उज्ज्वल बनते हैं। Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004177
Book TitleTrini Ched Sutrani
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNemichand Banthiya, Parasmal Chandaliya
PublisherAkhil Bharatiya Sudharm Jain Sanskruti Rakshak Sangh
Publication Year2007
Total Pages538
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, agam_bruhatkalpa, agam_vyavahara, & agam_dashashrutaskandh
File Size11 MB
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