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________________ ' व्यवहार सूत्र - द्वितीय उद्देशक ३६ संयम त्यागने के झादे से बहिर्गमन : पुनरागमन भिक्खू य गणाओ अवक्कम्म ओहाणुप्पेही वजेजा, से य ( आहच्च ) अणोहाइए इच्छेजा दोच्चं पि तमेव गणं उवसंपजित्ताणं विहरित्तए, तत्थ णं थेराणं इमेयारूवे विवाए समुप्पजित्था - इमं भो! जाणइ किं पडिसेवी? से य पुच्छियव्वे, किं पडिसेवी? से य वएजा-पडिसेवी, परिहारपत्ते, से य वएजा-णो पडिसेवी, णो परिहारपत्ते, जं से पमाणं वयइ से पमाणाओ घेयव्वे, से किमाहु भंते? सच्चपइण्णा ववहारा॥६४॥ ___कठिन शब्दार्थ - ओहाणुप्पेही - अवधावनानुप्रेक्षी - संयम को त्यागने का इरादा लिए हुए, वज्जेज्जा - चला जाए, आहच्च - संयम से नहीं हटा हुआ, अणोहाइए - अनवधावितसंयम से अपृथक्भूत, इमेयारूवे - इस प्रकार का, विवाए - विवाद, समुप्पज्जित्था - उत्पन्न हो जाए, इमं - इसको, भो - अरे (संबोधन), जाणह - जानते हैं। __भावार्थ - ६४. कोई भिक्षु संयम छोड़ने का इरादा लिए हुए गण से पृथक् हो जाए और वह संयम से अपृथक्भूत रहता हुआ - असंयम में नहीं जाता हुआ, पुनः उसी गण में आकर रहना चाहे. तथा उसे वापस लेने के संबंध में स्थविरों में ऐसा विवाद उठ जाए एवं वे यों कहने लगे - क्या आप जानते हैं कि इसने दोष का प्रतिसेवन किया है ? (तब उनका शास्त्रानुकूल यह मन्तव्य होता है -) उसी से पूछा जाए - क्या तुम दोष प्रतिसेवी हो? वह यदि कहे - मैं दोष प्रतिसेवी हूँ, तो वह परिहार-तप रूप प्रायश्चित्त का पात्र होता है। यदि वह कहे - मैं दोष प्रतिसेवी नहीं हूँ, तो वह परिहार-तप रूप प्रायश्चित्त का पात्र नहीं होता। जो वह प्रमाण प्रस्तुत करे - उसके अनुसार निर्णय करना चाहिए। हे भगवन्! ऐसा कहने का क्या कारण है? . सत्य प्रतिज्ञ - सत्यव्रती भिक्षुओं के कथन पर व्यवहार - प्रायश्चित्त का निर्णय निर्भर करता है। विवेचन - मन बड़ा चंचल है। व्रतनिष्ठ, संयमरत भिक्षु के मन में भी कभी संयम के प्रति अरुचि उत्पन्न हो सकती है। वैसा होने पर या मानसिक उद्वेगजनक किसी अन्य कारण Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004177
Book TitleTrini Ched Sutrani
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNemichand Banthiya, Parasmal Chandaliya
PublisherAkhil Bharatiya Sudharm Jain Sanskruti Rakshak Sangh
Publication Year2007
Total Pages538
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, agam_bruhatkalpa, agam_vyavahara, & agam_dashashrutaskandh
File Size11 MB
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