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________________ अकृत्यसेवन : आक्षेप : निर्णयविधि ***** प्रमाणपूर्वक, घेयव्वे- गृहीतव्य निर्णय करना चाहिए, किमाहु- किस कारण से कहते हैं, सच्चपइण्णा - सत्यप्रतिज्ञ, ववहारा व्यवहार । भावार्थ - ६३. दो साधर्मिक भिक्षु एक साथ विहरण करते हों, उनमें से एक भिक्षु किसी अकृत्यस्थान का प्रतिसेवन कर उसकी आलोचना करे ३५ - हे भगवन्! मैंने अमुक भिक्षु के साथ अमुक कारण से दोष सेवन किया है। (उसके द्वारा यों कहे जाने पर) दूसरे साधु से पूछना चाहिए - क्या तुम प्रतिसेवी हो ? वह यदि कहे - मैं दोष प्रतिसेवी हूँ तो वह परिहार- तप रूप प्रायश्चित्त का पात्र होता है। यदि वह कहे - मैं दोष प्रतिसेवी नहीं हूँ तो वह परिहार- तप रूप प्रायश्चित्त का पात्र नहीं होता । - जो वह प्रमाण प्रस्तुत करे उसके अनुसार निर्णय करना चाहिए। हे भगवन् ! ऐसा कहने का क्या कारण है ? सत्य प्रतिज्ञ - सत्यव्रती भिक्षुओं के कथन पर व्यवहार- प्रायश्चित्त का निर्णय निर्भर करता है। - Jain Education International - विवेचन - इस सूत्र में दो सहचारी भिक्षुओं की चर्चा है। उन दो में से एक दोषप्रतिसेवन कर उसकी आलोचना करता हुआ यदि ऐसा कहे कि मैंने अमुक - ( सहचारी) भक्षु के साथ अमुक कारण से दोष-प्रतिसेवन किया है। उसके यों कहने पर प्रायश्चित्त देने वाले भिक्षु को बिना प्रमाण के यह नहीं मानना चाहिए कि जिस भिक्षु का वह नाम ले रहा है, वह दोष - प्रतिसेवी है। क्योंकि ईर्ष्यावश दूसरे को नीचा दिखाने के लिए भी, लांछित करने के लिए भी ऐसा आरोप लगाया जा सकता है। - एक भिक्षु संयममय साधना का पथिक होता है। उसमें ईर्ष्या-द्वेष नहीं होना चाहिए, दूसरे पर मिथ्या आरोप नहीं लगाना चाहिए, किन्तु मानसिक विकृतिवश कदाचन ऐसा आशंकित है । ऐसा होने पर दूसरे भिक्षु से पूछे बिना निर्णय नहीं किया जाना चाहिए। उस द्वारा दिये गए प्रमाण आदि को सुनना चाहिए। वह दृढ़तापूर्वक जो बात कहे, उस पर ध्यान देना चाहिए क्योंकि वह भी सत्य महाव्रत का पालक होता है, सरासर मिथ्याभाषी नहीं हो सकता। यों पूरी तरह सोच-समझकर उसके दोषी या अदोषी होने का निर्णय किया जाना चाहिए। यह न्याय का मार्ग है। For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004177
Book TitleTrini Ched Sutrani
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNemichand Banthiya, Parasmal Chandaliya
PublisherAkhil Bharatiya Sudharm Jain Sanskruti Rakshak Sangh
Publication Year2007
Total Pages538
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, agam_bruhatkalpa, agam_vyavahara, & agam_dashashrutaskandh
File Size11 MB
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