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________________ बीस असमाधिस्थान सज्झायकारए - अनध्यायकाल में स्वाध्याय करना, ससरक्खपाणिपाए - सचित्त रजयुक्त हाथ-पैर, सहकरे - अनावश्यक शब्द बोलना (भेयकरे - भेद उत्पन्न करना), झंझकरे - झंझट पैदा करना, कलहकरे - कलह करना, सूरप्पमाणभोई - सूर्य प्रमाणभोजी- सूर्योदय से सूर्यास्त तक (जब तक सूर्य रहे) खाने वाला, एसणाऽसमिए - एषणा असमिति- एषणा समिति रहित होना - अवेषणीय आहार-पानी आदि लेना। भावार्थ - आयुष्मन्! मैंने सुना है, उन - सर्वज्ञ, सर्वदर्शी या परिनिर्वृत भगवान् ने जिस प्रकार आख्यात किया है। तदनुसार स्थविर भगवन्तों ने बीस असमाधिस्थान प्रतिपादित किए हैं। स्थविर भगवन्तों ने वे बीस असमाधिस्थान कौनसे प्रज्ञापित किए हैं? स्थविर भगवन्तों ने निम्नांकित रूप में बीस असमाधिस्थान प्रतिपादित किए हैं, यथा - १. चलने में शीघ्रता करना। २. प्रमार्जित किए बिना चलना। ' ३. भलीभांति प्रमार्जित किए बिना चलना। ४. प्रमाणाधिक बिछौने, आसन आदि रखना। ५. जो अपने से दीक्षा में बड़े हों, उन साधुओं के सामने अनावश्यक बोलना। ६. स्थविरों - वयोवृद्ध, ज्ञानवृद्ध श्रमणों को पीड़ा पहुँचाना। ७. पृथ्वी आदि एकेन्द्रिय जीवों को उपहत करना। ८. क्रोध से जलना। ९. कोपाविष्ट होना। १०. किसी की अनुपस्थिति में उसकी आलोचना - चुगली करना। ११. प्रतिक्षण निश्चयात्मक भाषा प्रयुक्त करना। . १२. नवीन, अनुत्पन्न क्लेश आदि को उत्पन्न करना। १३. क्षमित - क्षमापना द्वारा उपशमित पुराने क्लेश को पुनः जगाना। १४. वर्जित या निषिद्ध समय में स्वाध्याय करना। १५. सचित्त (आर्द्र) रज आदि से लिप्त हाथ-पैर युक्त रहना। . - १६. जहाँ बोलना अपेक्षित न हो वहाँ अवांछित रूप में बोलते जाना (या परस्पर भेद उत्पन्न करना)। Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004177
Book TitleTrini Ched Sutrani
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNemichand Banthiya, Parasmal Chandaliya
PublisherAkhil Bharatiya Sudharm Jain Sanskruti Rakshak Sangh
Publication Year2007
Total Pages538
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, agam_bruhatkalpa, agam_vyavahara, & agam_dashashrutaskandh
File Size11 MB
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