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बृहत्कल्प सूत्र - चतुर्थ उद्देशक
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होने से दिन में ही वहन काष्ठ आदि की याचना करके दिन में ही परठने की विधि समझनी चाहिए, रात्रि व विकाल में नहीं। 'रात्रि' व 'विकाल' शब्द के उपलक्षण से 'दिन' का भी ग्रहण समझ लेना चाहिए। भाष्य में आया हुआ इस संबंधी. अधिकांश वर्णन उचित नहीं लगता है।
इसके अलावा यहाँ यह भी ज्ञातव्य है कि सद्गृहस्थ मृत भिक्षु के शरीर की जो भी लौकिक क्रियाएँ करनी चाहें, साधु को उनसे सर्वथा निरपेक्ष रहना चाहिए।
कलहकारी भिक्षु के संदर्भ में विधि-निषेध भिक्खू य अहिगरणं कट्टतं अहिगरणं अविओसवेत्ता-णो से कप्पइ गाहावइकुलं भत्ताए वा पाणाए वा णिक्खमित्तए वा पविसित्तए वा, णो से कप्पइ बहिया वियारभूमिं वा विहारभूमिं वा णिक्खमित्तए वा पविसित्तए वा, णो से कप्पड़ गामाणुगामं वा इजित्तए, गणाओ वा गणं संकमित्तए वासावासं वा वत्थए, जत्थेव अप्पणो आयरियउवज्झायं पासेज्जा बहुस्सुयं बब्भागम, कप्पड़ से तस्संतिए आलोइज्जा पडिक्कमिजा णिदिजा गरहिज्जा विउट्टिज्जा विसोहिजा अकरणाए अब्भुट्टित्तए अहारिहं तवोकम्मं पायच्छित्तं पडिवजिज्जा, से य सुएणं पट्टविए आइयव्वे सिया, से य सुएणं णो पट्टविए णो आइयव्वे सिया, से य सुएणं णो पट्टविज्जमाणे णो आइयइ, से णिज्जूहियव्वे सिया॥३०॥
- कठिन शब्दार्थ - अहिगरणं - कलह, अविओसवेत्ता - उपशांत न करे, णिक्खमित्तए - निष्क्रांत होना - निकलना, पविसित्तए - प्रविष्ट होना, दूइजित्तए - विचरण करना, संकमित्तए - संक्रांत होना, वत्थए - वास करना, बब्भागमं - बहु आगम मर्मज्ञ, तस्संतिए - उनके समीप, विउट्टिज्जा - निवृत्त होना चाहिए, अहारिहं - यथोचित, पट्टविए - प्रस्थापित- दिए गए, आइयव्वे - ग्रहण करने योग्य, णिजूहियव्वे - निर्वृहितव्यपृथक् कर देना चाहिए।
भावार्थ - ३०. यदि कोई साधु कलह कर उसे व्युपशान्त - विशेष रूप से उपशान्त न करे तो उसे भक्तपान हेतु गाथापतिकुल - गृहस्थों के यहाँ भिक्षा हेतु जाना और घर में प्रविष्ट होना नहीं कल्पता ।
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