SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 285
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ धर्म प्राप्त भिक्षु के शरीर को परठने की विधि ☆☆☆☆☆☆☆☆☆★★★ रात्रि व विकाल में मनुष्यों का गमनागमन कम रहता है । साधु के उपाश्रय में भी दिन की. अपेक्षा रात्रि व विकाल में लोगों का आना जाना कम रहता है। अतः ऐसे समय में कोई साधु काल कर जावे और लोगों का मालूम नहीं हुआ हो तो साधु सूर्योदय के बाद गृहस्थों से बांस आदि उपकरण पडिहारा लाकर उस मृतक को बहुप्रासुक एकान्त स्थान में परठ दें, फिर उन पडिहारे याचे हुए उपकरणों को वापिस उसी के यहाँ रख दें और यदि लोगों को मालूम (ज्ञात) हो गया हो, लोग उसे परठने के लिए तैयार हो, तब तो साधु को ले जाने की आवश्यकता नहीं है। दिन में तो लोगों का आना-जाना विशेष रहने से प्रायः बहुतों को पता लग जाता है। अतः साधु को परठने का प्रसंग कम ही आता है। दिन में भी यदि कोई ले जाने को तैयार नहीं हो तो भी उसी विधि से परठ देना चाहिए। दिन की अपेक्षा रात्रि व विकाल में लोगों को कम मालूम होने के कारण जैनेतर ग्रामों में साधुओं के द्वारा ले जाने के विशेष प्रसंग आ सकते हैं । अतः सूत्र में 'रात्रि व विकाल' शब्द का ग्रहण किया है। ऐसी संभावना है। इस सूत्र में उस समय की परिस्थिति के अनुसार वर्णन किया है। वर्तमान में परिस्थिति बदल जाने से यह विधि नहीं रही है । १०३ **** भाष्यकार ने अन्तिम क्रिया के संदर्भ में विस्तार से वर्णन किया है। उन्होंने प्रवास स्थल से नैऋत्य कोण (दक्षिण-पश्चिम दिशा) में शव का परिष्ठापन शुभ बतलाया है। इससे संघ शान्ति एवं समाधि रहती है। यदि ऐसा स्थान प्राप्त न हो तो दक्षिण दिशा या दक्षिण - पूर्व में भी शव को परठा जा सकता है। अन्य दिशाओं में शव परिष्ठापन से संघ में कलह एवं मतभेद की आशंका रहती है। संध्या या रात्रि में भिक्षु के कालगत होने पर संघ के साधु रात्रि जागरण करते हैं क्योंकि ऐसी मान्यता है कि शव को अकेला नहीं छोड़ना चाहिए। इसके अलावा शव की अंगुली के मध्य भाग का छेदन करने का भी विधान है जिससे यक्ष, प्रेत आदि बाधा उत्पन्न न हो ( क्योंकि क्षत शरीर में प्रेत आदि प्रविष्ट नहीं होते) । शव को ले जाते समय आगे की ओर पाँव रखना, मुँहपत्ति, रजोहरण, चोलपट्टक आदि को साथ रखना आदि का भी भाष्यकार ने विशेष वर्णन किया है। इस संदर्भ में अन्य ज्ञापनीय तथ्य भाष्य से पठनीय हैं। उपर्युक्त सूत्र के भाष्य में परठने संबंधी विस्तृत वर्णन है । भाष्यकार तो रात्रि में परठने व वस्तुएं लाने का कहते हैं । परन्तु पूर्वजों की धारणा अनुसार याचना विधि दिन में ही करने की Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004177
Book TitleTrini Ched Sutrani
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNemichand Banthiya, Parasmal Chandaliya
PublisherAkhil Bharatiya Sudharm Jain Sanskruti Rakshak Sangh
Publication Year2007
Total Pages538
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, agam_bruhatkalpa, agam_vyavahara, & agam_dashashrutaskandh
File Size11 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy