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________________ ८३ शिक्षार्थ योग्य-अयोग्य ★★★★★★★★★★★★★★★★★★★★★★★★★★★★★★★★★★★★★★★★★★★★★★★★★★★★★★★★★★ धम्मो" के अनुसार विनय का सर्वाधिक महत्त्व है। “विद्या ददाति विनयम्, विनयाद्याति पात्रताम्" - इत्यादि अन्य शास्त्रों की उक्तियाँ भी इसे चरितार्थ करती हैं। 'शिक्षार्थ योग्य-अयोग्य तओ दुस्सण्णप्पा पण्णत्ता, तंजहा - दुढे मूढे वुग्गाहिए॥१२॥ तओ सुस्सण्णप्पा पण्णत्ता, तंजहा - अदुढे अमूढे अवुग्गाहिए॥१३॥ कठिन शब्दार्थ - दुस्सण्णप्पा - दुस्संज्ञाप्य - कठिनाई से संज्ञापित (शिक्षित) किए जाने योग्य, दुढे - दुष्ट, मूढे - मूर्ख, वुग्गाहिए - दुराग्रही, सुस्सण्णप्पा - सुसंज्ञाप्य - समीचीन रूप में शिक्षित किए जाने योग्य।। भावार्थ - १२. (निम्नांकित) तीन (श्रमण) दुःसंज्ञाप्य कहे गए हैं - १. दुष्ट २. मूर्ख तथा ३. दुराग्रही। १३. (निम्न) तीन (श्रमण) सुसंज्ञाप्य (सुबोध्य) कहे गए हैं - १. अदुष्ट (दुष्टता रहित) २. अमूर्ख - मूर्खता रहित तथा ३. दुराग्रह रहित। विवेचन - "ज्ञा" धातु से निष्पन्न "ज्ञातुं योग्यं ज्ञेयम्" के अनुसार जानने योग्य के अर्थ में ज्ञेय और दूसरे को ज्ञान कराने के अर्थ में (प्रेरणा या कारित के संदर्भ में) ज्ञाप्य बनता है। 'सम' (जो सम्यक् बोधक है) उपसर्ग लगने से संज्ञाप्य बनता है। संज्ञाप्य के पूर्व 'दुस्' उपसर्ग लगने से 'दुस्संज्ञाप्य' बनता है, जिसका अर्थ दुःखपूर्वक या कठिनाई के साथ ज्ञापित करने योग्य या समझाने योग्य होता है। जिसको धर्म तत्त्व समझा पाना कठिन होता है, वैसा शिक्षार्थी दुस्संज्ञाप्य कहा जाता है। इसके विपरीत "सुखेन संज्ञाप्यः सुसंज्ञाप्यः" - जिसे सुखपूर्वक (सुविधा पूर्वक) समझाया जा सकता है, वह सुसंज्ञाप्य है। इस सूत्र में द्वेषादि दोषयुक्त, गुण-अवगुण के भेद से अनभिज्ञ तथा दुराग़ह से आबद्ध शिक्षार्थी दुस्संज्ञाप्य श्रेणी में लिए गए हैं क्योंकि दूषित भावना, सत्-असत् की अनभिज्ञता और सदग्राहकता के अभाव में वे धार्मिक शिक्षा या धर्म तत्त्वों को आसानी से स्वायत्त नहीं कर पाते। ऐसे व्यक्तियों को सिखाना, पढ़ाना, ज्ञापित करना बड़ा कठिन होता है। Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004177
Book TitleTrini Ched Sutrani
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNemichand Banthiya, Parasmal Chandaliya
PublisherAkhil Bharatiya Sudharm Jain Sanskruti Rakshak Sangh
Publication Year2007
Total Pages538
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, agam_bruhatkalpa, agam_vyavahara, & agam_dashashrutaskandh
File Size11 MB
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