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________________ ८० बृहत्कल्प सूत्र - चतुर्थ उद्देशक ************************ * ** *** * ****** *************** १. साधर्मिक भिक्षुओं के वस्त्र-पात्रादि की चोरी करने वाला। २. इतर संप्रदायगत भिक्षुओं के उपकरणों की चोरी करने वाला तथा ३. अपने हाथ से ताड़न - प्रहार करने वाला। विवेचन - 'स्था' धातु 'स्थित होने' के अर्थ है। उसी का प्रेरणार्थक या कारित रूप स्थापित है। तदनुसार "स्थापयितुं योग्यः स्थाप्यः" - जो स्थापित करने योग्य होता है, उसे स्थाप्य कहा जाता है। उससे पूर्व 'अव' उपसर्ग लगाने से अवस्थाप्य बन जाता है, जो उसके अर्थ को और व्यापक बना देता है। "न स्थाप्यः अनवस्थाप्यः" - जो 'स्थापित करने योग्य' न हो वह अनवस्थाप्य कहा जाता है। यहाँ स्थापित न करने योग्य का तात्पर्य - पूर्ववर्णित दोषों का सेवन करने वाले साधुओं को तत्काल व्रत में स्थापित करने योग्य न मानना है। अर्थात् ये ऐसे दोष हैं, जिनका सम्मान, परिमार्जन या विशुद्धिकरण तत्क्षण संभव नहीं होता। वह तपविशेष पूर्वक समयसापेक्ष होता है। . . दीक्षार्थ अयोग्य त्रिविध नपुंसक तओ णो कप्पंति पव्वावेत्तए तंजहा - पण्डए वाइए कीवे॥४॥ एवं मुण्डावेत्तए॥५॥ सिक्खावेत्तए॥६॥ उवट्ठावेत्तए॥७॥ संभुंजित्तए॥८॥ संवासित्तए।॥९॥ कठिन शब्दार्थ - पव्वावेत्तए - दीक्षा के लिए, पण्डए - पण्डक, वाइए - वातिक, कीवे - क्लीब - नपुंसक, मुण्डावेत्तए - मुण्डित (केश लुंचन) करने हेतु, सिक्खावेत्तए - शिक्षित करने हेतु, उवट्ठावेत्तए - संयम में उपस्थापित करने हेतु, संभंजित्तए - मुनि के रूप में साथ आहार करने हेतु, संवासित्तए - साथ में रखने हेतु। .भावार्थ - ४-९. पण्डक, वातिक और क्लीब इन तीन प्रकार के नपुंसकों को दीक्षा देना नहीं कल्पता। इसी प्रकार उन्हें मुण्डित, शिक्षित, संयमोपस्थापित, सहभोजित तथा सहवासित करना भी नहीं कल्पता। विवेचन - इस सूत्र में तीन प्रकार के नपुंसकों को दीक्षा देना आदि निषिद्ध बतलाया गया है। शरीर विज्ञान और मनोविज्ञान की दृष्टि से यह विवेचन अत्यन्त महत्त्वपूर्ण है। Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004177
Book TitleTrini Ched Sutrani
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNemichand Banthiya, Parasmal Chandaliya
PublisherAkhil Bharatiya Sudharm Jain Sanskruti Rakshak Sangh
Publication Year2007
Total Pages538
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, agam_bruhatkalpa, agam_vyavahara, & agam_dashashrutaskandh
File Size11 MB
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