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________________ गृहस्थ के यहाँ मर्यादित वार्ता का विधान kat tatt★★★★★★★★★★★★★★★★★ विवेचन - उपरोक्त सूत्र में साधु के लिए जो अकल्पनीय स्थितियाँ बतलाई गई हैं, वे सभी उत्सर्ग मार्ग के अन्तर्गत हैं। यथासंभव साधु-साध्वियों को ऊपर बतलाई गई सभी स्थितियों से बचना चाहिए क्योंकि इससे उनके उज्वल, धवल, निर्मल, चारित्र पर आंच आ सकती है, निरर्थक शंका पैदा होने का भय रहता है। इतना अवश्य है - अपवाद रूप में गृहस्थ के यहाँ ठहरना कल्पनीय कहा है, जिसके हेतु ऊपर निर्दिष्ट किए गए हैं। भाष्यकार ने और भी अनेक हेतु प्रतिपादित किए हैं, जिनके उत्पन्न होने पर साधु-साध्वी का ठहरना शास्त्रानुमोदित होता है, जैसे - औषधि आदि लेने के लिए, अचानक वर्षा होने पर या किसी कारणवश (बारात या राजा की सवारी आदि) जनसमूह के आधिक्य के समय साधु-साध्वी कुछ समय के लिए गृहस्थ के आश्रय में मर्यादापूर्वक ठहर सकते हैं। ... गृहस्थ के यहाँ मर्यादित वार्ता का विधान णो कप्पइ णिग्गंथाण वा णिग्गंथीण वा अंतरगिहंसि जाव चउगाहं वा पंचगाहं वा आइक्खित्तए वा विभावेत्तए वा किट्टित्तए वा पवेइत्तए वा, णण्णत्थ एगणाएण वा एगवागरणेण वा एगगाहाए वा एगसिलोएण वा, से वि य ठिच्चा, णो चेव णं अठिच्चा॥२०॥ ___ कठिन शब्दार्थ - आइक्खित्तए - आख्यान या मूल रूप में कथन करना, विभावेत्तएचिन्तन प्रस्तुत करना - व्याख्या करना, किट्टित्तए - गीत की तरह उच्चारित करना, पवेइत्तए - (प्रवेदयितुं)-विशेष रूप से ज्ञापित करना, एगणाएण - एक उदाहरण द्वारा, एगवागरणेण - एक प्रश्न का उत्तर देना, एगसिलोएण - एक श्लोक में, ठिच्चा - खड़े रहकर, अठिच्चा - बैठकर (अस्थित्वा)। भावार्थ - २०. निर्ग्रन्थ-निर्ग्रन्थिनियों को गृहस्थ के घर में यावत् चार या पाँच गाथाओं का मूल रूप में कथन करना, उन पर चिन्तन-विमर्श प्रस्तुत करना, गीत की तरह उच्चारित करना तथा (उनका फल आदि बतलाते हुए) विशेष रूप से ज्ञापित करना नहीं कल्पता है। (अति आवश्यक होने पर) केवल एक उदाहरण, एक प्रश्न का उत्तर, एक गाथा या एक श्लोक में आशय स्पष्ट करना कल्पता है। यह भी खड़े-खड़े ही, बैठकर नहीं। Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004177
Book TitleTrini Ched Sutrani
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNemichand Banthiya, Parasmal Chandaliya
PublisherAkhil Bharatiya Sudharm Jain Sanskruti Rakshak Sangh
Publication Year2007
Total Pages538
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, agam_bruhatkalpa, agam_vyavahara, & agam_dashashrutaskandh
File Size11 MB
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