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________________ बृहत्कल्प सूत्र - तृतीय उद्देशक ६८ विवेचन - धर्म श्रवण एवं शंका समाधान हेतु श्रावक-श्राविकाओं के लिए उपाश्रय का स्थान निश्चित किया गया है। इसके अलावा प्रवचन आदि में भी साधु-साध्वी विविध तथ्यों का विस्तार से उद्घाटन, ज्ञापन एवं वर्णन करते हैं। .. अतः गोचरी हेतु गए हुए साधु-साध्वी के लिए गृहस्थ के घर धर्म विषयक चर्चा आदि का निषेध किया गया है क्योंकि साधु जिस कार्य के निमित्त आचार्य की आज्ञा से उपाश्रय से बाहर निर्गत हुआ है, उसे वही कार्य करना कल्पता है। इसके अलावा असमय एवं अनुचित स्थान पर की गई चर्चा भी अशोभनीय होती है। इसके अलावा यदि यह धर्मविषयक व्याख्या प्रश्नोत्तरों के माध्यम से लम्बी खिंच जाय तो स्वयं द्वारा समय विशेष पर करणीय कार्यों में तो विलम्ब होता ही है, अन्य भी इससे बाधित एवं प्रभावित होते हैं। ___ इसके अलावा गोचरी समय में साधु का गृहस्थ के यहाँ अधिक ठहरना भी विभिन्न शंकाओं को जन्म देता है। .. , अतः साधु को संक्षेप में ही धर्म तत्त्व का आख्यान कर, पूर्व निर्धारित कार्य करने चाहिएं। ___ गृहस्थ के यहाँ मर्यादित धर्मकथा का विधान __णो कप्पइ णिग्गंथाण वा णिग्गंथीण वा अंतरगिहंसि इमाइं पंचमहव्वयाई सभावणाई आइक्खित्तए वा जाव पवेइत्तए वा, णण्णत्थ एगणाएण वा जाव एगसिलोएण वा, से विय ठिच्चा, णो चेव णं अठिच्चा॥२१॥ कठिन शब्दार्थ - महव्वयाई - महाव्रतों का, सभावणाई - भावना सहित। भावार्थ - २१. निर्ग्रन्थ-निर्ग्रन्थिनियों को गृहस्थ के घर में पाँच महाव्रतों को भावना सहित आख्यात करना - कहना यावत् सम्यक् रूप में प्रतिपादित करना नहीं कल्पता है। ___(आवश्यक होने पर) केवल एक उदाहरण यावत् एक श्लोक में - संक्षेप में वर्णित करे तथा वह भी खड़े रहकर कहना कल्पता है न कि उस स्थान पर बैठकर। - विवेचन - पूर्व सूत्र में आया विवेचन यहाँ भी ग्राह्य है। क्योंकि किसी भी प्रकार के धर्मतत्त्व का विवेचन, विश्लेषण, आख्यान एवं प्रतिपादन गृहस्थ के घर में करना अकल्पनीय होता है। Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004177
Book TitleTrini Ched Sutrani
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNemichand Banthiya, Parasmal Chandaliya
PublisherAkhil Bharatiya Sudharm Jain Sanskruti Rakshak Sangh
Publication Year2007
Total Pages538
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, agam_bruhatkalpa, agam_vyavahara, & agam_dashashrutaskandh
File Size11 MB
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