________________
दशाश्रुतस्कन्ध सूत्र - दशम दशा
१३८ Addddddddddddddddddddddddddddddddddddddddddddkadattatrakatta
अप्पणिज्जियाओ देवीओ अभिजुंजिय अभिमुंजिय परियारेंति, जइ इमस्स सुचरियस्स तवणियम... चेव सव्वं जाव एवं खलु समणाउसो ! णिग्गंथो वा णिग्गंथी वा णियाणं किच्चा तस्स ठाणस्स अणालोइय अप्पडिक्कंते तं चेव जाव विहरइ, से णं तत्थ णो अण्णेसिं देवाणं अण्णं देविं अभिमुंजिय अभिमुंजिय परियारेइ, णो अप्पणा चेव अप्पाणं विउव्विय परियारेइ, अप्पणिज्जियाओ देवीओ अभिमुंजिय अभिजिय परियारेइ, सेणं तओ आउक्खएणं भवक्खएणं ठिइक्खएणं तहेव वत्तव्वं, णवरं हता! सदहेजा पत्तिएजा रोएज्जा, से णं सीलव्वयगुणवेरमणपच्चक्खाण - पोसहोववासाई पडिवज्जेज्जा? णो इणढे समढे, से णं दंसणसावए भवइ - अभिगयजीवाजीवे जाव अद्विमिंजपेम्माणुरागरत्ते अयमाउसो ! णिग्गंथे पावयणे अढे एस (अयं) परमट्टे सेसे अणद्रे, से णं एयारूवेणं विहारेणं विहरमाणे बहूई वासाइं समणोवासपरियागं पाउणइ पाउणित्ता कालमासे कालं किच्चा अण्णयेरसु देवलोगेसु देवत्ताए उववत्तारो भवइ, एवं खलु समणाउसो! तस्स णियाणस्स इमेयारूवे पावए फलविवागे जंणो संचाएइ सीलव्वयगुणवेरमणपच्चक्खाण-पोसहोववासाई पडिवज्जित्तए॥३०॥
कठिन शब्दार्थ - अद्विमिंजपेम्माणुरागरत्ते - अस्थि एवं मज्जा में धर्म की प्रीति से अनुरक्त - हाड-हाड एवं रग-रग में धर्म की प्रीतियुक्त, परमटे - परमार्थ, परियागं - पर्याय, पाउणइ - पालन करता है।
भावार्थ - आयुष्मान् श्रमणो! मैंने जिस धर्म का प्रतिपादन किया है यावत् संयममूलक साधन में निरत साधु-साध्वी चिन्तन करते हैं कि ये मनुष्य जीवन संबंधी कामभोग अध्रुव हैं, इत्यादि.वर्णन पूर्व की भाँति यहाँ ज्ञातव्य है। ___ऊपर देवलोक में जो देव हैं, वे अन्य देवों की देवियों के साथ भोग सेवन नहीं करते परन्तु अपनी देवियों (सहज रूप में प्राप्त) के साथ काम-भोगों का सेवन करते हैं।
यदि मेरे द्वारा सम्यक् रूप में आचरित तप, नियम का श्रेष्ठ फल हो आदि वर्णन पूर्ववत् ग्राह्य है यावत् आयुष्मान् श्रमणो! साधु या साध्वी इस प्रकार का निदान कर उसका आलोचन, प्रतिक्रमण किए बिना कालधर्म को प्राप्त हो जाते हैं यावत् देवलोक में उत्पन्न होकर सुखपूर्वक स्थित रहते हैं।
वे वहाँ अन्य देवों की देवियों के साथ भोग सेवन नहीं करते, स्वयं द्वारा विकुर्वित
Jain Education International
For Personal & Private Use Only
www.jainelibrary.org