________________
. [16] .★★★★★★★★★★★★★★★★★★★★★★★★★★★★★★★★★★★★★★★★★★★★★★★★★★★★★★★★★★★
सहित कण्ठस्थ धारण करना चाहिए, इसके अलावा साधु साध्वी को परस्पर सेवा करने का विधान सर्प काट खा जाने पर चिकित्सा आदि विषयों का कथन किया गया है। ___छठा उद्देशक - इस उद्देशक में अपने जातिजनों के घरों में जाने के लिए आचार्यादि की विशेष आज्ञा प्राप्त करना, बिना गीतार्थ साधु के साथ अकेले को उनके वहाँ नहीं जाना चाहिये, आचार्य, उपाध्याय के आचार सम्बन्धी पांच अतिशय और गणावच्छेदक के दो अतिशय का वर्णन, गीतार्थ और अगीतार्थ साधुओं के निवास सम्बन्धी विचारणा, एकल विहारी साधु के निवास सम्बन्धी विचारणा इसके अलावा शुक्रपुद्गल निष्कासन का प्रायश्चिय आदि कथन किया गया है।
सातवाँ उद्देशक - इस उद्देशक में अन्य गच्छ से आ हुई दूषित आचार वाली साध्वी को प्रवर्तिनी बिना आचार्य को पूछे और दोषों का शुद्धिकरण किये बिना नहीं ले सकती, उपेक्षा पूर्वक तीन बार एषणा दोष का सेवन करने पर साधु-साध्वी को प्रायश्चित्त का विधान, कब बिना साध्वी के संत किसी सती को दीक्षा दे सकते, इसी प्रकार साध्वी बिना साधु की उपस्थिति में संत को दीक्षा दे सकती है, अस्वाध्याय काल टाल कर स्वाध्याय करना, अपने शारीरिक अस्वाध्याय में स्वाध्याय नहीं करना, साधु-साध्वी के मृतशरीर को परठने की विधि, शय्यातर के द्वारा मकान बेचे और किराये दिये जाने नूतन स्वामी की आज्ञा लेना आदि विषयों का कथन किया गया है।
आठवां उद्देशक - इस उद्देशक में स्थविर गुरु भगवन्तों की आज्ञा से शयनासन भूमि का ग्रहण करना, व्याख्यानादि के लिए ऐसा पाट आदि लाना जो सरलता से एक हाथ में उठा कर लाया जा सके, एकल विहारी वृद्ध साधु की औपग्रहिक उपकरण हो तो उन्हें भिक्षाचारी के लिए जाते समय किसी की देखरेख में छोड़ सकता है, साधु-साध्वी के उपकरण रास्ते में गिर जाने पर अन्य साधु साध्वी को मिलने पर कैसा विवेक रखना, सदा ऊनोदरी तप करना इत्यादि विषयों का कथन किया गया है। ... नववाँ उद्देशक - इस उद्देशक में किन परिस्थिति में शय्यातर का खाद्य पदार्थ लेना कल्पता है, चार प्रकार की दत्तियों की मर्यादा में भिक्षा ग्रहण कर साधु प्रतिमाओं की आराधना कर सकते हैं, दत्तियों के स्वरूप, अभिग्रह योग्य आहार के प्रकारों का इत्यादि का कथन किया गया है।
Jain Education International
For Personal & Private Use Only
www.jainelibrary.org