________________
___ [15] .
****************aaaaaaaaaaaaaaaaaaaaaaaaaaaaaaaaaaaaaaaaa****
उनके छेद प्रायश्चित्त का विधान, दोष का सेवन करने वाला साधु-साध्वी किन-किन के पास आलोचना कर सकते हैं इत्यादि विषयों का चिन्तन किया गया है। ____ दूसरा उद्देशक - इस उद्देशक में परिहार तप वहन करने का विधान, रुग्ण साधु साध्वी की उपेक्षा कर उन्हें गच्छ से बाहर नहीं निकालना बल्कि अग्लानभाव से सेवा करने का विधान, आक्षेप एवं विवाद पूर्ण स्थिति प्रमाणित होने पर प्रायश्चित्त देना इत्यादि विषयों का. विस्तृत वर्णन किया गया है।
तीसरा उद्देशक - इस उद्देशक में सिंघाड़ा प्रमुख बनकर विचरने वाले साधु- साध्वी की योग्यता, आचार्य, उपाध्याय, गणावच्छेदक के पद के लिए कितनी दीक्षा पर्याय, आगमिक जानकारी की आवश्यकता होनी चाहिए साथ ही परिस्थिति वश निर्धारित योग्यता से कम योग्यता वाले को भी इस पद पर आरूढ किया जा सकता है, आचार्य उपाध्याय की नेश्राय में तरुण एवं नवदीक्षित साधुओं को रहने का विधान, चतुर्थव्रत भंग करने वाले, छल कपट करने वाले को इस पद से मुक्त करने का विधान इत्यादि अन्य विषयों पर इस उद्देशक में चिन्तन किया गया है।
चौथा उद्देशक - इस उद्देशक में आचार्य, उपाध्याय, गणावच्छेदक कम से कम कितने साधुओं के साथ विचरण करे, सिंघाड़ा प्रमुख काल धर्म को प्राप्त होने पर योग्य साधु को उनके स्थान पर नियुक्त करना, आचार्य के निर्वाण होने पर उनके निर्देशानुसार अन्य साधु को. उनके स्थान पर नियुक्त करना, बड़ी दीक्षा का समय निर्धारण करना, अन्य गण में अध्ययन आदि के लिए गये साधु के साथ व्यवहार का विवेक, अनेक साधु, आचार्य, उपाध्याय, गणावच्छेदक साथ में विचरण करते समय किन-किन बातों का ध्यान रखना इत्यादि विषयों पर चिंतन किया गया है। ___पांचवां उद्देशक - इस उद्देशक में प्रर्वतनी, गणावच्छेदिका को कम से कम कितनी साध्वियों के साथ विचरण करना चाहिए,. साध्वी प्रमुखा काल धर्म प्राप्त हो जाने पर शेष साध्वियों में से योग्य साध्वी को साध्वी प्रमुखा बना कर विचरण करे, प्रर्वत्तनी काल धर्म को प्राप्त होने पर उनके निर्देशानुसार अन्य को उनके स्थान पर नियुक्त करे और वह योग्य न हो तो अन्य को उनके स्थान पर नियुक्त करे, आचारांग निशीथ सूत्र प्रत्येक साधु साध्वी को. अर्थ
Jain Education International
For Personal & Private Use Only
www.jainelibrary.org