SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 147
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ ११४ Jain Education International ********★★★★★★★ तसे सेणिराया जाणसालियं सद्दावेइ सद्दावेत्ता एवं वयासी - "भो देवाणुप्पिया! खिप्पामेव धम्मियं जाणप्पवरं जुत्तामेव उवट्ठवेह उवट्ठवित्ता मम एयमाणत्तियं पच्चप्पिणह।" तए णं से जाणसालिए सेणिएणं रण्णा एवं वुत्ते समाणे हट्ट तुट्ठ जाव हियए जेणेव जाणसाला तेणेव उवागच्छइ उवागच्छित्ता जाणसालं अणुप्पविसइ अणुप्पविसित्ता जाणगं पच्चुवेक्खड़ पच्चुवेक्खित्ता जाणं पच्चोरुभइ पच्चोरुभित्ता दूसं वीपी) इ पवीणित्ता जाणगं संपमज्जइ संपमज्जित्ता जाणगं णीणेइ णीणित्ता जाणाई समलंकरेइ समलंकरेत्ता जाणाई वरभंडगमंडियाई करेइ करित्ता जाणाई संवेढेइ संवेदित्ता जेणेव वाहणसाला तेणेव उवागच्छइ उवागच्छित्ता वाहणसालं अणुप्पविसइ अणुप्पविसित्ता वाहणाईं पच्चुवेक्खड़ पच्चुवेक्खित्ता वाहणाई संपमज्जइ संपमजित्ता वाहणाईं अप्फालेइ अप्फालित्ता वाहणारं णीणेइ णीणित्ता दूसं पवीणेड़ पवीणित्ता वाहणाई समलंकरेइ समलंकरित्ता वरभंडगमंडियाइं करेइ करित्ता वाहणाई जाणगं जोएइ जोएत्ता वट्टमग्गं गाइ गाहित्ता पओयलट्ठि पओयधरे य समं आरोहइ आरोहित्ता अंतरासमपयंसि जेणेव सेणिए राया तेणेव उवागच्छइ उवागच्छित्ता करयल जाव एवं ' वयासी-जुत्ते ते सामी ! धम्मिए जाणप्पवरे आइट्ठे भदंतु वग्गूहिं गाहित्ता ॥ ७॥ कठिन शब्दार्थ - अब्भुट्ठेइ - उठता है, पीइदाणं - प्रीतिदान प्रसन्न होकर दिया जाने वाला अनुदान, पडिविसज्जेइ - प्रतिविसर्जित करता है - विदा करता है, जगरगुत्तियं - नगररक्षक कोतवाल, आसिय जल से प्रक्षालित करो, संमज्जि सम्मार्जित करो, ओवलित्तं - गोबर, मृत्तिका आदि का लेप करो, पच्चष्पिणंति - पुनः सूचित करते हैं, बलवाडयं - सेनापति, जोहकलियं - योद्धाओं से सुसज्जित, सण्णाहेह - सज्जित करो, जाणसालियं - यानशाला के अधिकारी, धम्मियं धार्मिक कार्यों में प्रयोजनीय, जाणप्पवरंउत्तम रथ, जुत्तामेव तैयार करो, पच्चुवेक्खड़ - भलीभाँति अवलोकित किया, पच्चोरुभइ(यान रखने के ऊँचे चौक से ) नीचे उतारता है ( प्रत्यवरोहयति - अधोऽवतारयति), दूसं - आच्छादन वस्त्र, पवीणेइ हटाता है, णीणेइ - बाहर लाता है, वरभंडगमंडियाई उत्तम उपकरणों से सुशोभित किया, संवेढेइ - स्थापित किया एक ओर खड़ा किया, अपसालेह - स्नेह से हाथ फिराता है, वट्टमग्गं - यानशाला से यान के बाहर निकलने का रास्ता, लट्ठि - प्रतोदयष्टिः- चाबुक, पओयधरे- सारथि, अंतरासमपयंसि - अन्त: पुर 1 दशा श्रुतस्कन्ध सूत्र - दशम दशा ★★★★★★★★★★★★★★ 1 - For Personal & Private Use Only ****** ★★★★★★★★★★★★★★ - - www.jainelibrary.org
SR No.004177
Book TitleTrini Ched Sutrani
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNemichand Banthiya, Parasmal Chandaliya
PublisherAkhil Bharatiya Sudharm Jain Sanskruti Rakshak Sangh
Publication Year2007
Total Pages538
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, agam_bruhatkalpa, agam_vyavahara, & agam_dashashrutaskandh
File Size11 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy