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आवश्यक सूत्र
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वर्तमान में उपलब्ध ३२ आगमों का स्वाध्याय दो प्रकार की श्रेणी से किया जाता है
१. कालिक और २. उत्कालिक ।
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प्रथम अध्ययन
१. कालिक जो नियत काल में अर्थात् दिन रात के प्रथम व अंतिम प्रहर में पढ़े जाते हैं अर्थात् जिनके मूल पाठ का स्वाध्याय इस नियत काल में किया जाये, वे कालिकं सूत्र हैं - ३२ सूत्रों में २३ कालिक हैं (११ अंग, ७ उपांग, १ मूल सूत्र और ४ छेद सूत्र - २३) आचारांग आदि ११ अंग, १२. जम्बूद्वीप प्रज्ञप्ति १३. चन्द्रप्रज्ञप्ति, १४. निरयावलिका, १५. कल्पातवतंसिका, १६. पुष्पिका, १७. पुष्पचूलिका, १८. वृष्णिदशा, १९. उत्तराध्ययन, २०. दशाश्रुतस्कन्ध, २१. बृहत्कल्प, २२. व्यवहार सूत्र, २३. निशीथ सूत्र ।
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२. उत्कालिक जो अस्वाध्याय के समय को छोड़ कर शेष रात्रि और दिन के सभी समयों में पढ़े जा सकते हैं अर्थात् उनके मूलपाठ का स्वाध्याय, अस्वाध्याय काल को छोड़कर कर सकते हैं, वे उत्कालिक सूत्र हैं। जो इस प्रकार हैं।
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(५ उपांग, ३ मूल, १ आवश्यक, ये ९ उत्कालिक सूत्र हैं)
१. औपपातिक, २. राजप्रश्नीय, ३. जीवाभिगम, ४. प्रज्ञापना, ५. सूर्यप्रज्ञप्ति ६. दशवैकालिक ७. नंदी ८, अनुयोगद्वार ९. आवश्यक सूत्र ।
नोट
आवश्यक सूत्र के लिए अस्वाध्याय में प्रतिक्रमण करने की विधि है। इसके लिए अस्वाध्याय काल वर्जन की आवश्यकता नहीं है, अतः इसे किसी भी समय पढ़ सकते हैं।
कालिक सूत्रों को उनके लिए निश्चित समय के अतिरिक्त पढ़ना अतिचार है। १२. काले न कओ सज्झाओ (काले न कृतः स्वाध्यायः) जिस सूत्र के लिए जो काल निश्चित किया गया, उस समय स्वाध्याय न करना दोष है।
जैसे जो राग या रागिनी जिस काल में गाना चाहिए उससे भिन्न काल में गाने से अहित होता है वैसे ही अकाल में स्वाध्याय से अहित होता है तथा यथाकाल स्वाध्याय नहीं करने से ज्ञान में हानि तथा अव्यवस्थिता का दोष लगता है इसलिये ये दोनों अतिचार वर्ण्य है।
१३. असझाइए सज्झाइयं (अस्वाध्याये स्वाध्यायितं) अस्वाध्याय अर्थात् ऐसा कारण या समय उपस्थित होना जिसमें शास्त्र की स्वाध्याय वर्जित है उसमें स्वाध्याय करना, अस्वाध्याय में स्वाध्याय अतिचार हैं। अस्वाध्याय के ३२ कारण कहे गये हैं जो इस प्रकार हैं
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