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सामायिक - ज्ञानातिचार सूत्र +00000000000mmmmmmmmmmm0000000mmentarwanememewwwwwwwwwwwwwwwww***
आकाश सम्बन्धी १० अस्वाध्याय -
१. उल्कापात - बड़े तारे का टूटना अर्थात् स्थानान्तरित होना। तारा विमान के तिर्यक् गमन करने पर या देव विकुर्वणा आदि करने पर आकाश में तारा टूटने जैसा दृश्य होता है। यह कभी लम्बी रेखा युक्त गिरते हुए दिखाई देता है, कभी प्रकाश युक्त गिरते हुए दिखाई देता है, यह उल्कापात कहलाता है।
इसका अस्वाध्याय काल एक प्रहर तक रहता है।
२. दिग्दाह - पुद्गल परिणमन से एक या अनेक दिशाओं में कोई महानगर जल रहा हो इस प्रकार भूमि से कुछ ऊपर प्रकाश दिखाई देना तथा नीचे अन्धकार मालूम होना दिग्दाह है। इसका अस्वाध्याय काल जब से दिखाई दे तब से एक प्रहर का है।
३. गर्जन - अकाल में मेघ गर्जना हो तो इसका अस्वाध्याय काल दो प्रहर का होता है।
४. विद्युत् - अकाल में बिजली चमके तो इसका अस्वाध्याय काल एक प्रहर का होता है।
नोट - गर्जन और विद्युत् दो प्रकार से होते हैं - १. देवकृत और २. स्वाभाविक।
आगमों में २८ नक्षत्र माने हैं उनमें से आर्द्रा से स्वाति नक्षत्र ये नौ नक्षत्र वर्षा ऋतु के माने हैं। इनमें गर्जन और विद्युत् की अस्वाध्याय नहीं होती है क्योंकि उस समय में इनका होना स्वाभाविक है। . .
५. निर्यात - बादल अथवा बिना बादल वाले आकाश में प्रचण्ड ध्वनि को निर्घात कहते हैं। इसको बिजली कड़कना तथा बिजली गिरना भी कहते हैं। इसका आठ प्रहर का अस्वाध्याय काल होता है।
६. यूपक - शुक्ल पक्ष की एकम, बीज और तीज के दिन सूर्यास्त होने एवं चन्द्र अस्त होने के समय की मिश्र अवस्था को यूपक कहा जाता है अथवा संध्या प्रभा एवं चन्द्र प्रभा एक साथ होने से अर्थात् संध्या प्रभा एवं चन्द्र प्रभा का मिश्रण हो जाने को यूपक कहते हैं। अतः इन तीन दिनों में रात्रि की प्रथम प्रहर में अस्वाध्याय काल रहता है। ____ नोट - अमावस्या से पंचमी तक कोई तिथि क्षय होने पर अमावस्या सहित तीन दिन अस्वाध्याय काल मानना चाहिए तथा एकम, द्वितीया में से कोई तिथि बढ़ने पर तृतीया की अस्वाध्याय नहीं मानी जाती है।
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