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सामायिक - ज्ञानातिचार सूत्र
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रहित पढ़ा हो, मन, वचन और काया को स्थिर न रख कर पढ़ा हो, घोष रहित पाठ किया हो, शिष्य में शास्त्र ग्रहण करने की जितनी शक्ति हो उससे न्यूनाधिक पढाया हो, आगम को बुरे भाव से ग्रहण किया हो, अकाल में स्वाध्याय किया हो, काल में स्वाध्याय न किया हो, अस्वाध्याय काल में स्वाध्याय किया हो, स्वाध्याय काल में स्वाध्याय नहीं किया हो। पढ़ते हुए, गुनते-अर्थ को पढ़ते हुए और विचारते-अर्थ का चिंतन करते हुए ज्ञान और ज्ञानवंत पुरुषों की अविनय आशातना की हो, तो मेरा पाप निष्फल हो।
विवेचन - जिससे षड्द्रव्य, नवतत्त्वों और हेय, ज्ञेय, उपादेय का सम्यग्ज्ञान हो, मोक्षमार्ग में चलने की प्रेरणा मिले, उसे आगम (सिद्धान्त) कहते हैं। अथवा जो तीर्थंकर भगवान् के द्वारा उपदिष्ट होने के कारण शंका रहित और अलौकिक होने से भव्य जीवों को चकित कर देने वाले ज्ञान को देने वाला हो या जो अर्हन्त भगवान् के मुख से निकलकर गणधर देव को प्राप्त हुआ और भव्य जीवों ने सम्यक् भाव से जिसको माना, उसे 'आगम' कहते हैं।
' . आगम के तीन भेद हैं - . १. सुत्तागमे (सूत्रागम) - तीर्थंकरों ने अपने श्रीमुख से जो भाव प्रकट किये, उन्हें गणधरों ने अपने कानों से सुनकर जिन आचारांगादि आगमों की रचना की, उस शब्द रूप मूल आगम को सुत्तागमे (सूत्रागम) कहते हैं।
२. अत्यागमे (अर्थागम) - तीर्थंकरों ने अपने श्रीमुख से जो भाव प्रकट किये, उस भाव रूप - अर्थ आगम को 'अर्थागम' कहते हैं यानी तीर्थंकर भगवान् द्वारा प्रतिपादित उपदेश 'अर्थागम' कहलाता है। _. ३. तदुभयागमे (तदुभयागम) - वह आगम जिसमें सूत्र, मूल और अर्थ दोनों. हो तदुभयागम कहलाता है।
सूत्र, अर्थ या तदुभय रूप आगम को विधिपूर्वक न पढना अर्थात् उसके पढने में किसी प्रकार का दोष लगाना ज्ञान का अतिचार है। ज्ञान के चौदह अतिचार इस प्रकार हैं -
१. वाइद्धं (व्याविद्धं) - व्याविद्ध पढना अर्थात् सूत्र को तोड़कर मणियों को बिखेरने
के समान सूत्र के अक्षर, मात्रा, व्यञ्जन, अनुस्वार, पद, आलापक आदि को उलट -पुलट कर पढना 'व्याविद्ध' अतिचार है। ऐसा पढने से शास्त्र की सुंदरता नहीं रहती
है तथा अर्थ का बोध भी अच्छी तरह से नहीं होता।
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