________________
सामायिक - उत्तरीकरण सूत्र (तस्स उत्तरी का पाठ)
विवेचन - यह कायोत्सर्ग के पहले बोला जाने वाला पाठ है। इसके द्वारा ईर्यापथिक प्रतिक्रमण से शुद्ध आत्मा में बाकी रही हुई सूक्ष्म मलिनता को भी दूर करने के लिए विशेष परिष्कार स्वरूप कायोत्सर्ग का संकल्प किया जाता है। कायोत्सर्ग प्रायश्चित्त का पांचवां भेद है। कायोत्सर्ग में दो शब्द हैं - काय और उत्सर्ग। अतः कायोत्सर्ग का अर्थ हुआ - कायाशरीर की (उपलक्षण से मन और वचन की) चंचल क्रियाओं का उत्सर्ग - त्याग। आत्मा की अशुद्धि का कारण मन, वचन और काया के भ्रान्त आचरण से उत्पन्न पाप मल है। इस प्रायश्चित्त (कायोत्सर्ग) के द्वारा आध्यात्मिक शुद्धि (आत्म शुद्धि - हृदय शुद्धि) हो जाती है क्योंकि प्रायश्चित्त के द्वारा पाप का परिमार्जन और दोष का शमन होता है। प्रस्तुत सूत्र में अतिचारों की विशेष शुद्धि के लिए विधिपूर्वक कायोत्सर्ग का स्वरूप बताया गया है। आत्मविकास की प्राप्ति के लिए शरीर संबंधी समस्त चंचल व्यापारों का त्याग करना ही इस सूत्र का प्रयोजन है। ___ आत्मा को विशेष उत्कृष्ट बनाने के लिए, शल्यों का त्याग करने के लिए. पापकर्मों का . नाश करने के लिए कायोत्सर्ग किया जाता है। शरीर की आवश्यक क्रियाएं जिन्हें रोक पाना . संभव नहीं होता है उन क्रियाओं का आगार (छूट) रखने के लिये यह पाठ प्रत्येक कायोत्सर्ग के पूर्व बोला जाता है। कायोत्सर्ग विषयक मुख्य १२ आगार इस प्रकार हैं -
१. ऊससिएणं. २. णीससिएणं 3. खासिएणं ४. छीएणं ५. जंभाइएणं ... उड्डुएणं ७. वायणिसग्गेणं ८. भमलीए ९. पित्तमुच्छाए १०. सुहुमेह
अंगसंचालेहिं ११. सुहुमेहिं खेलसंचालेहिं १२. सुहुमेह दिट्ठिसंचालहिं। .. एवमाइएहि आगारेहिं - एवं अर्थात् इसी तरह के 'आदि' और भी आगार हैं। आदि शब्द से यहाँ टीकाकार ने चार आगारों को ग्रहण किया है - १. आग के उपद्रव से दूसरे स्थान पर जाना २. चूहे आदि को मारने के लिए बिल्ली झपटती हो या किसी पंचेन्द्रिय जीव का छेदन भेदन होता हो तो उनके रक्षार्थ प्रयत्न करना ३. डकैती पड़ने या राजा आदि के सताने से स्थान बदलना ४. सिंह आदि के भय से सांप आदि विषैले जंतु के डंक से या दिवार आदि गिर पड़ने की शंका से दूसरे स्थान को जाना।
कायोत्सर्ग करने के समय ये आगार इसलिए रखे जाते हैं कि सब मनुष्यों की शक्ति एक सरीखी नहीं होती है। जो कम शक्ति वाले और डरपोक होते हैं वे ऐसे अवसर पर घबरा जाते हैं इसलिए ऐसे साधकों की अपेक्षा आगार रखे गये हैं।
Jain Education International
For Personal & Private Use Only
www.jainelibrary.org