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________________ सामायिक - उत्तरीकरण सूत्र ( तस्स उत्तरी का पाठ ) पापकर्म की स्वीकृति है अर्थात् मैंने पाप किया है इस रूप में अपने पापों को स्वीकार करना । 'ड' का अर्थ उपशम भाव के द्वारा पाप का प्रतिक्रमण करना है, पाप क्षेत्र को लांघ जाना है । यह संक्षेप में 'मिच्छामि दुक्कर्ड' पद का अक्षरार्थ है। यानी मिच्छामि दुक्कर्ड का अर्थ द्रव्य भाव से नम्र तथा चारित्र मर्यादा में स्थित हो कर मैं सावद्य क्रियाकारी आत्मा की निंदा करता हूं और किये हुए दुष्कृत (पाप) को उपशम भाव से हटाता हूं। अथवा निरुक्त रीति से मिच्छामि दुक्कर्ड का अर्थ इस प्रकार भी होता है - 'मि' 'छा' 'मि' 'दुक्कर्ड' ऐसा पदच्छेद करने से 'मि' मुझ में रहे हुए 'छा' मिथ्यात्व, अविरति, कषाय, प्रमाद अशुभ योग रूप दुक्कर्ड = पाप को 'मि' = दूर करता हूँ । Jain Education International = ऊपर कहा हुआ मिथ्यादुष्कृत प्रायश्चित्त समिति गुप्ति रूप संयम मार्ग में प्रवृत्त साधु के प्रमाद आदि कारण से लगे हुए दोष को उसी तरह हटा देता है जैसे दीपक अंधेरे को, किंतु जो साधु जानबूझ कर दोष सेवन किया करता हो उसका मिथ्या - दुष्कृत केवल गुरु आदि के मनोरंजन के लिए ही है, पाप से छुटकारे के लिए नहीं, क्योंकि भूल से होने वाले अपराधों के लिए जो प्रायश्चित्त नियत है उससे जानबूझ कर अपराध करने वाले का दोष दूर नहीं हो सकता । अब अतिचारों की विशेष शुद्धि के लिए विधिपूर्वक कायोत्सर्ग का स्वरूप दिखलाते हैंउत्तरीकरण सूत्र ( तस्स उत्तरी का पाठ) तस्स उत्तरीकरणेणं, पायच्छित्तकरणेणं, विसोहीकरणेणं, विसल्लीकरणेणं, पावाणं कम्माणं णिग्घायणट्ठाए ठामि काउस्सग्गं ॥१॥ अण्णत्थ ऊससिएणं, णीससिएणं, खासिएणं, छीएणं, जंभाइएणं, उड्डुएणं, वायनिसग्गेणं, भमलीए, पित्तमुच्छाए ॥२॥ सुहुमेहिं अंगसंचालेहिं, सुहुमेहिं खेलसंचालेहिं, सुहुमेहिं दिट्ठिसंचालेहिं ॥३॥ एवमाइएहिं आगारेहिं, अभग्गो अविराहिओ, हुज्ज मे काउस्सग्गो ॥४॥ जाव अरहंताणं* भगवंताणं, णमोक्कारेणं+ न पारेमि ॥५ ॥ ताव कार्य ठाणेणं, मोणेणं, झाणेणं, अप्पाणं वोसिरामि ॥ पाठान्तर - अरिहंताणं + णमुक्कारेण For Personal & Private Use Only २५ www.jainelibrary.org
SR No.004176
Book TitleAavashyak Sutra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNemichand Banthiya, Parasmal Chandaliya
PublisherAkhil Bharatiya Sudharm Jain Sanskruti Rakshak Sangh
Publication Year2007
Total Pages306
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_aavashyak
File Size6 MB
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