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सामायिक - प्रतिक्रमण सूत्र
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सुए - श्रुत। श्रुत का अर्थ है - श्रुतज्ञान। वीतराग तीर्थंकर भगवंतों के श्रीमुख से सुना हुआ होने से आगम-साहित्य को श्रुत कहा गया है। श्रुत यह अन्य ज्ञानों का उपलक्षण है। अतः वे भी ग्राह्य हैं। लिपिबद्ध होने से पूर्व आगम श्रुति परंपरा से ही ग्रहण किये जाते थे अर्थात् गुरु अपने शिष्य को और शिष्य अपने शिष्य को मौखिक रूप में आगम प्रदान करते थे। इस कारण भी आगम 'श्रुत' कहलाता है। श्रुत संबंधी अतिचार का आशय है - श्रुत की विपरीत श्रद्धा एवं प्ररूपणा।
सामाइए - सामायिक का अर्थ समभाव है। यह दो प्रकार का माना जाता है - सम्यक्त्व और चारित्र। चारित्र - पांच महाव्रत, पांच समिति, तीन गुप्ति आदि हैं। सम्यक्त्व - जिन प्ररूपित सत्य मार्ग पर श्रद्धा है। इसके दो भेद हैं - निसर्गज और अधिगमज। अत: सामायिक में दर्शन और चारित्र दोनों का समावेश समझना चाहिए। ____णाणे तह दंसणे चरित्ते कहने के बाद फिर सुए सामाइए कहने से पुनरुक्ति दोष नहीं समझना चाहिए। ये तीनों भेद ज्ञान, दर्शन और चारित्र श्रुतधर्म और सामायिक धर्म में ही समाविष्ट हो जाते हैं। अत: तीनों शब्दों की ही दूसरी प्रकार से विशिष्टता बताने के लिए इन्हें श्रुत और सामायिक धर्म में अवतरित कर दिया गया है।
तिण्हं गुत्तीणं - योग निरोध रूप तीन गुप्ति - १. मन गुप्ति २. वचन गुप्ति और ३. काय गुप्ति।
चउण्हं कसायाणं - चार कषाय। जो शुद्ध स्वरूप वाली आत्मा को कलुषित करे, जिसके द्वारा संसार की वृद्धि हो, उसे 'कषाय' कहते हैं। इसके चार भेद हैं - १. क्रोध २. मान ३. माया और ४. लोभ।
पंचण्हं महव्व्याणं - पांच महाव्रत - १. सर्वथा प्राणातिपात विरमण २. सर्वथा मृषावाद विरमण ३. सर्वथा अदत्तादान विरमण ४. सर्वथा मैथुन विरमण और ५. सर्वथा परिग्रह
विरमण।
. छण्हं जीवणिकायाणं - षट्जीवनिकाय - १. पृथ्वीकाय २. अप्काय ३. तेउकाय ४. वायुकाय ५. वनस्पतिकाय और ६. त्रसकाय। .
सतण्हं पिंडेसणाणं - सात पिण्डैषणा - दोषरहित शुद्ध प्रासुक अन्न जल ग्रहण करना 'एषणा' है। इसके दो भेद हैं - पिण्डैषणा और पानैषणा। आहार ग्रहण करने को
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