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सामायिक - सामायिक सूत्र (सामायिक चारित्र लेने का पाठ)
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अध्ययन १ गाथा २ से स्पष्ट होता है।' आज्ञा-निर्देश को करने वाला विनीत होता है। आज्ञा-निर्देश का पालन करना विनय है। 'विनय' और 'नमस्कार' एकार्थक शब्द है।)
'नमस्कार सूत्र' के पाठ में प्रमुख रूप से 'भाव नमस्कार' समझना चाहिये। आशय यह है कि - 'पांच पदों की आज्ञा के पालन में धर्म है।' '१८ पापों का त्याग करना' आज्ञा है। श्रावक एवं सम्यग्दृष्टियों की ऐसी आज्ञा हो तो उसका समावेश भी पांच पदों की आज्ञा में हो जाता है - क्योंकि उस आज्ञा के मूल उद्गम स्रोत अर्हन्त आदि ही हैं। यहां पर जो 'धर्म' बताया गया है - वह 'लोकोत्तर धर्म' (आत्म हितकर) समझना चाहिए। माता-पिता
आदि का विनय करना-लौकिक विनय होने से उसका यहाँ पर ग्रहण नहीं समझना चाहिए। ___'नमस्कार सूत्र' का पाठ सभी जनों (मन्द, तीव्र बुद्धि वाले एवं बाल युवा वृद्ध सभी) के लिए पूर्ण उपयोगी होने से एवं सरलता से समझ में आ सके इत्यादि कारणों से पांचों पदों के पूर्व ‘णमो' शब्द को रखा गया है। अतः पाँच बार ‘णमो' शब्द से पुनरुक्ति दोष नहीं । समझना चाहिए। प्रत्येक सूत्र-पाठ के अनन्त गम, अनन्त पर्याय होने से उपर्युक्त रूप से सूत्र पाठ की रचना के भी ज्ञानियों के ज्ञान में अनेक हेतु-कारण हो सकते हैं। ... पंच परमेष्ठी को सभी मंगलों में प्रथम (प्रधान) मंगल कहा है, क्योंकि अन्य मंगल तो अमंगल हो जाते हैं जबकि पंच परमेष्ठी को किया नमस्कार सभी पापों को गलाता है तथा आनंद एवं कल्याण को देने वाला है, अतः कभी अमंगल नहीं होता।
सामायिक सूत्र (सामायिक चारित्र लेने का पाठ) - जैसे कोई चतुर किसान बिना जोती हुई जमीन में बीज नहीं बोता है और अगर कोई बोये भी तो वह बीज व्यर्थ जाता है, वैसे ही पंच परमेष्ठी-नमस्कार से हृदय क्षेत्र को पवित्र किये बिना सामायिक सफल नहीं होती। अत एव शिष्य पहले नमस्कार करके निम्न सूत्र से सामायिक ग्रहण करता है -
करेमि भंते! सामाइयं सव्वं सावजं जोगं पच्चक्खामि जावज्जीवाए तिविहं तिविहेणं-मणेणं वायाए काएणं ण करेमि ण कारवेमि करतं पि अण्णं ण समणुजाणामि। तस्स भंते! पडिक्कमामि जिंदामि गरिहामि अप्पाणं वोसिरामि॥३॥
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