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________________ १० आवश्यक सूत्र - प्रथम अध्ययन प्राणियों पर समभाव रखता है, उसी का सच्चा सामायिक व्रत है, ऐसा केवलज्ञानियों ने फरमाया है। सामायिक के आध्यात्मिक फल के विषय में उत्तराध्ययन सूत्र अ. २९ में गौतमस्वामी, प्रभु महावीरस्वामी से पूछते हैं कि - "सामाइएणं भंते! जीवे कि जणयइ?" - हे भगवन्! सामायिक करने से जीव को क्या लाभ होता है? भगवान् ने फरमाया - "सामाइएणं सावज्जजोगविरई जणयह।" सामायिक करने से सावध योग से निवृत्ति होती है अर्थात् पाप कर्मों से सम्पूर्ण निवृत्ति होने पर आत्मा पूर्ण विशुद्धि और निर्मल बन जाती है यानी मोक्ष पद को प्राप्त कर लेती है। - सामायिक की साधना उत्कृष्ट है। सामायिक के बिना आत्मा का पूर्ण विकास असंभव है। सभी धार्मिक साधताओं के मूल में सामायिक रहा हुआ है। जैन संस्कृति समता प्रधान है। समता भाव की दृष्टि से ही सामायिक अध्ययन को प्रथम स्थान प्राप्त है। सामायिक अध्ययन का प्रथम सूत्र इस प्रकार है - नमस्कार सूत्र (आर्य छन्द) णमो अरहंताणं, णमो सिद्धाणं, णमो आयरियाणं। णमो उवज्झायाणं, णमो लोए सव्वसाहूणं॥१॥ (अनुष्टुप छन्द) एसो पंच णमोक्कारो०, सव्वपावप्पणासणो। मंगलाणं च सव्वेसिं, पढम हवइ मंगलं॥२॥ कठिन शब्दार्थ - णमो - नमस्कार हो, अरहंताणं - अर्हन्तों को, सिद्धाणं - सिद्धों को, आयरियाणं - आचार्यों को, उवज्झायाणं - उपाध्यायों को, लोए- लोक में, सव्यसाहूणं - सभी साधुओं को, एसो - यह, पंच णमोक्कारो - पांच परमेष्ठियों को .पाठान्तर - अरिहंताणं ० पाठान्तर - णमुक्कारों Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004176
Book TitleAavashyak Sutra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNemichand Banthiya, Parasmal Chandaliya
PublisherAkhil Bharatiya Sudharm Jain Sanskruti Rakshak Sangh
Publication Year2007
Total Pages306
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_aavashyak
File Size6 MB
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