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________________ सामाइयं णामं पढमं अज्झयणं सामायिक नामक प्रथम अध्ययन उत्थानिका - आवश्यक सूत्र के छह अध्ययनों में सामायिक को प्रथम स्थान दिया गया है। समभाव की प्राप्ति होना अर्थात् रागद्वेष रहित माध्यस्थ भाव 'सामायिक' है। ममत्वभाव के कारण आत्मा अनादिकाल से चतुर्गति रूप संसार में परिभ्रमण कर रही है ऐसी आत्मा को समभाव में रमण कराने के लिये सावध योगों से निवृत्ति आवश्यक है जो कि सामायिक से संभव है। आत्मोत्थान के लिये सामायिक जघन्य प्रयोग है, मोक्ष प्राप्त करने का उपाय हैं। समस्त धार्मिक क्रियाओं के लिए आधारभूत होने से ही सामायिक को प्रथम स्थान प्रदान किया गया है। सामायिक अर्थात् आत्मस्वरूप में रमण करना, सम्यग्ज्ञान, दर्शन, चारित्र और तप में तल्लीन होना। सम्यग्ज्ञान, दर्शन, चारित्र और तप ही मोक्षमार्ग है। मोक्षमार्ग में सामायिक मुख्य है, यह बताने के लिए ही सामायिक अध्ययन को सबसे प्रथम रखा गया है। भगवतीसूत्र शतक १ उद्देशक ९ में फरमाया है कि - . “आया सामाइए, आया सामाइयस्स अट्ठ" - अपने शुद्ध स्वरूप में रहा हुआ आत्मा ही सामायिक है। शुद्ध, बुद्ध, मुक्त चिदानंद स्वरूप आत्मतत्त्व की प्राप्ति करना ही सामायिक का प्रयोजन है। 'मैं कौन हूं? मेरा स्वरूप कैसा है?' आदि विचारों में तल्लीन होना, आत्म-गवेषणा करना सामायिक है। . अनुयोगद्वार सूत्र में सच्चा सामायिक व्रत क्ग है? इसकी परिभाषा बताते हुए कहा है - "जस्स सामाणिओ अप्पा, संजमे णियमे तवे। तस्स सामाइयं होइ, इइ केवलि भासियं।" अर्थात् जिसकी आत्मा संयम, नियम और तप में तल्लीन है, उसी का सामायिक व्रत है ऐसा. केवलज्ञानियों ने फरमाया है। "जो समो सव्वभूएसु, तसेसु थावरेसु या तस्स सामाइयं होड़, इइ केवलि भासियं।" अर्थात् जो त्रस और स्थावर सभी जीवों को अपनी आत्मा के समान मानता है, सभी Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004176
Book TitleAavashyak Sutra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNemichand Banthiya, Parasmal Chandaliya
PublisherAkhil Bharatiya Sudharm Jain Sanskruti Rakshak Sangh
Publication Year2007
Total Pages306
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_aavashyak
File Size6 MB
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