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________________ २८० आवश्यक सूत्र - परिशिष्ट तृतीय (३) प्रतिहरणा - सब प्रकार से अशुभयोगों का दुर्ध्यानों का, दुराचरणों का त्याग करना परिहरणा है। (४) वारणा - 'आत्म निवारणा वारणा' अर्थात् वारणा का अर्थ निषेध है। . भगवान् ने साधकों को विषय भोग की ओर जाने से रोका है। जो जिनेश्वर प्रभु की आज्ञानुसार चलते हैं, अपने को विषय भोग से बचा कर रखते हैं, वे मोक्षपुरी में पहुंच जाते हैं। ___ (५) निवृत्ति - ‘असुभभाव नियत्तणं नियत्ती' अशुभ अर्थात् पापाचरण रूप अकार्य से निवृत्त होना निवृत्ति है। (६) निन्दा - आत्म-साक्षी से पूर्वकृत आचरणों को बुरा समझना उसके लिये पश्चात्ताप करना निंदा है। (७) गर्दा - गुरुदेव या किसी भी अनुभवी साधक के समक्ष अपने पापों की निंदा करना गर्दा है। (८) शुद्धि - शुद्धि का अर्थ निर्मलता है। प्रतिक्रमण आत्मा पर लगे हुए दोष रूप : दागों को धो डालने की साधना है, अतः वह शुद्धि कहलाता है। ५. कायोत्सर्ग आवश्यक - संयम में लगे अतिचारों को प्रतिक्रमण रूपी जल से धोने के बाद जो कुछ अशुद्धि का अंश रह जाता है उसे कायोत्सर्ग के उष्ण जल से धोया जाता है। आचार्य सकलकीर्ति कहते है - ममत्वं देहतो नश्येत्, कायोत्सर्गेण धीमताम्। निर्ममत्वं भवेन्नून, महाधर्म-सुखकारकम्॥१८॥ (८४ प्रश्नोत्तर श्रावकाचार) अर्थ - कायोत्सर्ग के द्वारा ज्ञानी साधकों का शरीर पर से ममत्व भाव छूट जाता है और शरीर पर से ममत्व भाव का छूट जाना ही वस्तुतः महान् धर्म और सुख है। . आचार्य भद्रबाहु आवश्यक नियुक्ति में इस ममत्व त्याग पर प्रकाश डालते हुए कहते हैं - वासी चंदणकप्पो जो, मरणे जीविए य समासण्णो। देहे य अपडिबद्धो, काउस्सग्गो हवइ तेस्स।।१५४८॥ अर्थ - चाहे कोई भक्ति भाव से चंदन लगाए, चाहे कोई द्वेष वश वसौले से छीले, चाहे जीवन रहे, चाहे इसी क्षण मृत्यु आ जाये, परन्तु जो साधक देह में आसक्ति नहीं रखता है उक्त सब स्थितियों में समचेतना रखता है, वस्तुतः उसी का कायोत्सर्ग शुद्ध होता है। Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004176
Book TitleAavashyak Sutra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNemichand Banthiya, Parasmal Chandaliya
PublisherAkhil Bharatiya Sudharm Jain Sanskruti Rakshak Sangh
Publication Year2007
Total Pages306
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_aavashyak
File Size6 MB
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