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________________ २४४ आवश्यक सूत्र - परिशिष्ट द्वितीय भावार्थ - मैं अतिथिसंविभाग व्रत का पालन करने के लिए निर्ग्रन्थ साधुओं को अचित्त, दोष रहित अशन-पान-खाद्य, स्वाद्य आहार का, वस्त्र, पात्र, कम्बल, पाद पौंछन, चौकी, पट्टा, शय्या, संस्तारक, औषध-भेषज आदि का साधु-साध्वी का योग मिलने पर दान , तब शुद्ध होऊँ, ऐसी मेरी श्रद्धा प्ररूपणा है। यदि मैं साधु को देने योग्य अचित्त वस्तु को सचित्त वस्तु पर रखा हो, अचित्त वस्तु को सचित्त वस्तु से ढंका हो, साधुओं को भिक्षा देने का समय टाल दिया हो, स्वयं सूझता होते हुए भी दूसरों से दान दिलाया हो, ईर्ष्या भाव से दान दिया हो तो मैं उसकी आलोचना करता हूँ और चाहता हूँ कि मेरा वह सब पाप निष्फल हो। विवेचन - जिनके आने की कोई तिथि या समय नियत नहीं है ऐसे पंच महाव्रतधारी निर्ग्रन्थ श्रमणों को उनके कल्प के अनुसार १ अशन २ पानी ३ खाद्य (खादिम) ४ स्वाद्य (स्वादिम) ५ वस्त्र ६ पात्र ७ कम्बल ८. पादपोंछन ९ पीठ १० फलक ११ शय्या (साधुसाध्वी के ठहरने का स्थान) १२ संस्तारक १३ औषध और १४ भेषज - ये चौदह प्रकार की वस्तुएँ निष्काम बुद्धि पूर्वक आत्म-कल्याण की भावना से देना तथा दान का संयोग न मिलने पर सदा ऐसी भावना रखना अतिथिसंविभाग व्रत है। जिन वस्तुओं को साधु-साध्वी लेने के बाद वापस नहीं करते हैं उन्हें “अपडिहारी" (अप्रातिहार्य) वस्तुएँ कहते हैं । इसके आठ भेद हैं - १. अशन २. पान. ३. खाद्य ४. स्वाद्य ५. वस्त्र ६ पात्र ७. कम्बल और ८. पादपोंछन। जिस वस्तु को साधु-साध्वी अपने उपयोग में लेकर कुछ काल तक रखकर बाद में वापस कर देते हैं उन्हें "पडिहारी" (प्रातिहार्य) कहते हैं । इसके छह भेद हैं - १. पीठ (चौकी) २. फलक (पाट) ३. शय्या (पौषधशाला, घर) ४. संस्तारक (तृण आदि का आसन) ५. औषध और ६. भेषज। उपरोक्त चौदह प्रकार की अचित्त और दोष रहित वस्तुएँ साधु-साध्वियों को उनकी आवश्यकतानुसार देना, चौदह प्रकार का दान कहलाता है। सूंठ, हल्दी, आंवला, हरड़, लवंग आदि असंयोगी द्रव्य "औषध" कहे जाते हैं । हिंगाष्टक चूर्ण, त्रिफला आदि संयोगी वस्तुएँ "भेषज" कहलाती हैं। साधु-साध्यिां दान के उत्कृष्ट (उत्तम) पात्र हैं अतः उनका इस बारहवें व्रत में उल्लेख किया गया है । प्रतिमाधारी श्रावक, व्रतधारी श्रावक और सामान्य स्वधर्मी सम्यक्त्वी भी दान के पात्र हैं। Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004176
Book TitleAavashyak Sutra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNemichand Banthiya, Parasmal Chandaliya
PublisherAkhil Bharatiya Sudharm Jain Sanskruti Rakshak Sangh
Publication Year2007
Total Pages306
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_aavashyak
File Size6 MB
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