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________________ श्रावक आवश्यक सूत्र - अतिथि संविभाग व्रत २४५ बारहवें व्रत के पाँच अतिचार ये हैं - १. सचित्त निक्खेवणया (सचित्त निक्षेप) - साधु को नहीं देने की बुद्धि से कपट पूर्वक अचित्त वस्तुओं को सचित्त पर रखना "सचित्त निक्षेप" कहलाता है । जैसे-रोटी के बर्तन को नमक आदि के बर्तन पर रखना, धोवन पानी के पात्र को सचित्त जल के घड़े पर रखना, खिचड़ी आदि को चूल्हे पर रखना, मिठाई आदि को हरी पत्तल पर रखना आदि । __२. सचित्त पिहणया (सचित्त पिधान) - साधु को नहीं देने की बुद्धि से कपट पूर्वक अचित्त अन्न आदि को सचित फलादि से ढंकना सचित्त पिधान अतिचार है । ३. कालाइक्कम (कालातिक्रम) - उचित भिक्षा काल का अतिक्रमण करना कालातिक्रम अतिचार है । भोजन के समय द्वार बन्द रखना, स्वयं घर के बाहर रहना, रात्रि के समय दान की भावना भाना आदि कालातिक्रम अतिचार है। ४. परववएसे (परव्यपदेश) - आहारादि अपना होने पर भी न देने की बुद्धि से उसे दूसरे का बताना परव्यपदेश अतिचार है तथा आप सूझता होते हुए भी दास नौकर आदि से दान दिलवाना, यह भी इसी अतिचार में आता है। . . ५. मच्छरियाए (मत्सरिता) - अमुक पुरुष ने दान दिया है, क्या मैं उससे कृपण या हीन हूँ ? इस प्रकार ईर्षा भाव से दान देने में प्रवृत्ति करना, विशिष्ट दानी कहलाने के लिए दान देना आदि मत्सरिता अतिचार है ।। इस व्रत को धारण करने वाले को मुख्य रूप से निम्न बातों का ध्यान रखना चाहिये - १. भोजन बनाने वाले और करने वाले को सचित्ते वस्तुओं के संघट्टे के बिना बैठना चाहिये। ____२. घर में सचित्त-अचित्त वस्तुओं को अलग-अलग रखने की व्यवस्था होनी चाहिये। . ३. सचित्त वस्तुओं का काम पूर्ण होने पर उनको यथा स्थान रखने की आदत होनी चाहिये। .. ४. कच्चे पानी के छींटे, हरी वनस्पति का कचरा व गुठलियां आदि को घर में नहीं बिखेरने की प्रवृत्ति रखनी चाहिये। ५. धोवन पानी के बारे में अच्छी जानकारी करके अपने घर में सहज बने अचित्त कल्पनीय पानी को तत्काल नहीं फैंकने की आदत रखनी चाहिये, उसे योग्य स्थान में रखना चाहिये। Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004176
Book TitleAavashyak Sutra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNemichand Banthiya, Parasmal Chandaliya
PublisherAkhil Bharatiya Sudharm Jain Sanskruti Rakshak Sangh
Publication Year2007
Total Pages306
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_aavashyak
File Size6 MB
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