________________
श्रावक आवश्यक सूत्र - अतिथि संविभाग व्रत
लेकिन जब तक सामायिक का समय पूर्ण न हो तब तक सामायिक के विशेष नियमों का
ध्यान रखे । जैसे पैर फैलाना, सोना आदि नहीं करे।
शंका- पौषध में सामायिक करे या नहीं ?
સમાધાન पौषध के ५ अतिचार हैं जिनका अर्थ भावार्थ से स्पष्ट है।
1
१२. अतिथि संविभाग व्रत
-
आहार युक्त देश पौषध में सामायिक ली और पाली जा सकती है ।
Jain Education International
बारहवाँ अतिथि-संविभाग व्रत - समणे णिग्गंथे फासुयएसणिज्जेणं असणपाग-खाइम- साइम-वत्थ - पडिग्गह- कंबल - पायपुंछणेणं पाडिहारिय पीढफलग - सेज्जा - संथारएणं ओसह भेसज्जेणं पडिलाभेमाणे विहरामि, ऐसी मेरी सद्दहणा - प्ररूपणा तो है, साधु-साध्वी का योग मिलने पर निर्दोष दान दूं, तब फरसना कर के शुद्ध होऊँ एवं बारहवें व्रत अतिथि- संविभाग के पंच अइयारा जाणियव्वा न समायरियव्वा, तंजहा ते आलोउं - सचित्तनिक्खेवणया, सचित्तपिहणया, कालाइक्कमे, परववएसे, मच्छरियाए, जो मे देवसिओ अइयारो कओ तस्स मिच्छामि दुक्कडं ।
कठिन शब्दार्थ - अतिथि जिनके आने की तिथि नियत नहीं हैं, संविभाग - अपने लिए तैयार किये हुए. भोजनादि में से कुछ हिस्सा देना, समणे श्रमण साधु, णिग्गंथे - निर्ग्रन्थ - पंच महाव्रतधारी, फासुय - प्रासुक (अचित्त), एसणिज्जेणं - एषणीय (उद्गमादि दोष रहित), पडिग्गह पात्र, कंबल कम्बल, पायपुंछणेणं - पाद पोंछन (पांच पोंछने का रजोहरण आदि), पाडिहारिय - प्रातिहार्य - लौटा देने योग्य, पीढ - फलग चौकी, पाटा, सेज्जा संथारएणं शय्या के लिए संस्तारक तृण आदि का आसन, ओसह औषध, भेसज्जेणं - भेषज, पडिलाभेमाणे बहराता हुआ, विहरामि अचित्त वस्तु सचित्त वस्तु पर रक्खी हो, सचित्तपिहणया अचित्त वस्तु सचित्त से ढँकी हो, कालाइक्कमे - साधुओं को भिक्षा देने का समय टाल दिया हो, परववएसे आप सूझता होते हुए भी दूसरों से दान दिलाया हो, मच्छरियाए - मत्सर ( ईर्ष्या) भाव से दान दिया हो ।
रहता हूँ, सचित्तनिक्खेवणया
-
-
-
-
For Personal & Private Use Only
-
-
-
-
२४३
-
www.jainelibrary.org