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श्रावक आवश्यक सूत्र - प्रतिपूर्ण पौषध व्रत
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___११. प्रतिपूर्ण पौषध व्रत ग्यारहवां व्रत-पडिपुण्ण पौषध-असणं पाणं खाइमं साइमं का पच्चक्खाण, अबंभ सेवन का पच्चक्खाण, अमुक मणि सुवर्ण का पच्चक्खाण, माला-वण्णग-विलेवण का पच्चक्खाण, सत्थ-मुसलादिसावज्जजोग सेवन का पच्चक्खाण, जाव अहोरत्तं पज्जुवासामि दविहं तिविहेणं न करेमि, न कारवेमि, मणसा, वयसा, कायसा, ऐसी मेरी सद्दहणा है प्ररूपणा है पौषध का अवसर आये पौषध करूँ तब फरसना करके शुद्ध होऊँ एवं ग्यारहवां व्रत प्रतिपूर्ण पौषध के पंच अइयारा जाणियव्वा न समायरियव्वा तंजहा ते आलोउं -अप्पडिलेहिय-दुप्पडिलेहिय-सेज्जासंथारए, अप्पमज्जियदुप्पमज्जिय-सेज्जासंथारए, अप्पडिलेहिय-दुप्पडिलेहिय-उच्चार-पासवण-भूमि, अप्पमज्जिय-दुप्पमज्जिय-उच्चार-पासवण-भूमि, पोसहस्स सम्म अणणुपालणया, जो मे देवसिओ अइयारो कओ तस्स मिच्छामि दुक्कडं ।
कठिन शब्दार्थ - पडिपुण्ण - प्रतिपूर्ण, असणं - अशन, पाणं - पान, खाइमं - खादिम, साइमं - स्वादिम, अबंभ - मैथुन, अप्पडिलेहिय-दुप्पडिलेहिय सेजा संथारए - पौषध में शय्या-संथारा न देखा हो या अच्छी तरह न देखा हो, अप्पमज्जिय-दुप्पमजियसेजा संथारए - पूंजा न हो या अच्छी तरह से पूंजा न हो, अप्पडिलेहिय-दुप्पडिलेहिय उच्चार पासवण भूमि - उच्चार प्रस्रवण की भूमि न देखी हो या अच्छी तरह न देखी हो, अप्पमजिय-दुप्पमजिय-उच्चार पासवण भूमि - उच्चार प्रस्रवण की भूमि पूंजी न हो या अच्छी तरह से पूंजी न हो, पोसहस्ससम्म अणणुपालणया - पौषध का सम्यक् प्रकार से पालन न किया हो।
भावार्थ - मैं प्रतिपूर्ण पौषध व्रत के विषय में एक दिन रात के लिए अशन, पान, खादिम और स्वादिम इन चारों प्रकार के आहार का त्याग करता हूँ। अब्रह्म सेवन का, अमुक मणि सुवर्ण आदि के आभूषण पहनने का, फूलमाला पहनने का, सुगंधित चूर्ण और चंदन
0 जब पौषध हों तब यह पाठ बोलें - ऐसी मेरी सद्दहणा है प्ररूपणा है पौषध की शुद्ध फरसना कर के शुद्ध होऊँ ।
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