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________________ श्रावक आवश्यक सूत्र - देशावकाशिक व्रत रखी हो, उसमें जो द्रव्यादि की मर्यादा की है, उसके उपरान्त उपभोग परिभोग वस्तु को भोग निमित्त से भोगने को पच्चक्खाण जाव अहोरत्तं एगविहं तिविहेणं न करेमि मणसा क्यसा कायसा एवं दसवें देशावकाशिक व्रत के पंच अइयारा जाणियव्वा न समायरियव्वा, तंजहा ते आलोउं आणवणप्पओगे, पेसवणप्पओगे, सद्दाणुवाए, रूवाणुवाए, बहियापुग्गल पक्खेवे, जो मे देवसिओ अइयारो कओ तस्स मिच्छामि दुक्कडं । कठिन शब्दार्थ - जाव अहोरत्तं एक दिन रात पर्यन्त, आणवणप्पओगे - नियमित सीमा से बाहर की वस्तु मंगवाई हो, पेसवणप्पओगे - परिमाण किये हुए क्षेत्र से बाहर वस्तु भिजवाई हो, सद्दाणुवाए - शब्द करके चेताया हो, रूवाणुवाए रूप दिखाकर अपने भाव प्रकट किये हो, बहिया पुग्गलपक्खेवे- कंकर आदि फेंक कर दूसरों को बुलाया हो । भावार्थ छठे दिग्व्रत में जो दिशाओं का परिमाण किया है देशावकाशिक व्रत में उसका प्रतिदिन संकोच किया जाता है। मैं उस संकोच किये गये दिशाओं का परिमाण से बाहर के क्षेत्र में जाने का तथा दूसरों को भेजने का त्याग करता हूँ। एक दिन और एक रात तक परिमाण की गई दिशाओं से आगे मन, वचन, काया से न स्वयं जाऊँगा और न दूसरों को भेजूँगा । मर्यादित क्षेत्र में द्रव्यादि का जितना परिमाण किया है उस परिमाण के सिवाय उपभोग परिभोग निमित्त से भोगने का त्याग करता हूँ। मन, वचन, काया से मैं उनका सेवन नहीं करूँगा। यदि मैंने मर्यादा के बाहर की वस्तु मंगवाई हो, भिजवाई हो, शब्द करके चेताया हो, रूप दिखा कर अपने भाव प्रकट किये हो, कंकर आदि फेंककर दूसरों को बुलाया हो तो मैं उसकी आलोचना करता हूँ और चाहता हूँ कि मेरे वे सब पाप निष्फल हो । - विवेचन - पहले के सब व्रतों में जो मर्यादाएं यावज्जीवन के लिए की थी, उनका और भी अधिक संक्षेप प्रतिदिन के लिए करना देशावकाशिक व्रत है। वर्तमान में चौदह नियमों से सब व्रतों का प्रतिदिन संक्षेप किया जाता है । चौदह नियम इस प्रकार हैं। १. सचित्त - पृथ्वीकाय आदि सचित्त की मर्यादा २. द्रव्य पान संबन्धी द्रव्यों की मर्यादा ३. विगय - पांच विगयों में से विगय की मर्यादा ४. पनी की मर्यादा ५. ताम्बूल - मुखवास की मर्यादा ६. वस्त्र मर्यादा ७. कुसुम - पुष्प, इत्र आदि की मर्यादा ८ वाहन खान Jain Education International - -- - - For Personal & Private Use Only पगरखी, चप्पल, जूते, मौजे आदि पहनने ओढ़ने के वस्त्रों की कार, मोटर आदि वाहनों की - २३९ - ************* www.jainelibrary.org
SR No.004176
Book TitleAavashyak Sutra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNemichand Banthiya, Parasmal Chandaliya
PublisherAkhil Bharatiya Sudharm Jain Sanskruti Rakshak Sangh
Publication Year2007
Total Pages306
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_aavashyak
File Size6 MB
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