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श्रावक आवश्यक सूत्र - अहिंसा अणुव्रत
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समाधान - हिंसा के दो भेद हैं - १. संकल्पजा २. आरंभजा। जानबूझ कर मारने के विचार से मारना संकल्पजा हिंसा है। श्रावक इसका त्याग करता है। किन्तु आरंभजा का त्याग नहीं कर सकता है। क्योंकि अन्य आरम्भ करते हुए श्रावक की मारने की बुद्धि न रहते हुए भी उससे त्रस जीवों की हिंसा हो जाती है। जैसे - पृथ्वीकाय खोदते हुए भूमिगत त्रस जीवों की हिंसा हो जाती है। वाहन पर चलते हुए वाहन से कीड़ी आदि जीव मर जाते हैं। ऐसी आरम्भी त्रस हिंसा का श्रावक त्याग करने में समर्थ नहीं होता परन्तु संकल्पी हिंसा का तो त्याग कर सकता है।
प्रश्न - सापराधी किसे कहते हैं?
उत्तर - आक्रमणकारी शत्रु, सिंह, सर्प आदि को धनापहारी चोर, डाकू आदि को, शील लूटने वाले जार आदि को या उचित और आवश्यक राष्ट्रनीति, राजनीति, समाजनीति आदि का भंग करने वाले को सापराधी कहते हैं।
प्रश्न - श्रावक, तापराधी की हिंसा क्यों नहीं छोड़ देता?
उत्तर - संसार में रहने के कारण उस पर आश्रितों की रक्षा, पालन-पोषण आदि का भार रहता है अत: वह सापराधी हिंसा नहीं छोड़ पाता है। ' प्रश्न - निरपराध किसे कहते हैं?
उत्तर. - जिसने किसी का अपराध नहीं किया हो उसे निरपराध कहते हैं जैसे आक्रमण नहीं करने वाले शान्ति प्रेमी मनुष्य, धनशील आदि को नहीं लूटने वाले साहूकार सुशील आदि, अपने मार्ग से जाते हुए सिंह सर्प आदि और किसी को कष्ट न पहुँचाने वाले गाय, हरिण, तीतर, मछली, अण्डे आदि निरपराध हैं।
प्रश्न - आकुट्टि से मारना किसे कहते हैं ? - उत्तर - कषायवश निर्दयतापूर्वक प्राणों से रहित करने, मारने की बुद्धि से मारना, आकुट्टि की बुद्धि से मारना कहलाता है।
प्रश्न - जीव अपने कर्मानुसार मरते हैं और दुःख पाते हैं फिर मारने वाले को पाप क्यों लगता है?
उत्तर - मारने की दुष्ट भावना और मारने की दुष्ट प्रवृत्ति से ही मारने वाले को पाप लगता है।
प्रथम अणुव्रत के पाँच अतिचारों का स्पष्टीकरण इस प्रकार है -
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