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________________ आवश्यक सूत्र - परिशिष्ट द्वितीय - तेइन्द्रिय, चउरिदिय - चउरिन्द्रिय, पंचिंदिय - पंचेन्द्रिय, पच्चक्खाण - त्याग, दुविहं दो करण से, तिविहेणं तीन योग से, न करेमि नहीं करता हूँ, न कारवेमि- नहीं करवाता हूँ, मणसा मन से, वयसा वचन से, कायसा काया से, पेयाला - प्रधान, बंधे - रोष वश गाढ़ा बन्धन बांधा हो, वहे - गाढा घाव घाला हो, छविच्छेए- अवयव (चाम आदि) का छेद किया हो, अइभारे - अधिक भार भरा हो, भत्तपाण-वोच्छेए - भात पानी का विच्छेद किया हो । भावार्थ - मैं स्वसंबंधी - शरीर में पीडाकारी तथा अपराधी जीवों को छोड़ कर द्वीन्द्रिय, त्रीन्द्रिय, चउरिन्द्रिय और पंचेन्द्रिय त्रस जीवों की हिंसा संकल्प करके मन, वचन और काया से न करूँगा और न करवाऊँगा। मैंने किसी जीव को रोष वश गाढ़ बंधन से बांधा हो, चाबुक लाठी आदि से मारा हो, पीटा हो, किसी जीव के चर्म का छेदन किया हो, अधिक भार भरा हो, भात पानी का विच्छेद किया हो अथवा खाने पीने में रुकावट डाली हो तो मेरे वे सब पाप निष्फल हों । विवेचन स्व शरीर में पीड़ाकारी, अपराधी तथा सापेक्ष निरपराधी के सिवाय शेष बेइन्द्रिय आदि त्रस जीवों की संकल्प पूर्वक हिंसा का दो करण तीन योग से त्याग करना, स्थूल प्राणातिपात त्याग रूप प्रथम अहिंसा अणुव्रत है । प्राणातिपात प्रमादपूर्वक सूक्ष्म और बादर, त्रस और स्थावर रूप समस्त जीवों दश प्राणों (पांच इन्द्रिय, मन, वचन, काया, श्वासोच्छ्वास और आयु) में से किसी भी प्राण का अतिपात (नाश) करना प्राणातिपात है । स्थावर जीवों की हिंसा करना, सूक्ष्म प्राणातिपात है। २१८ - प्रश्न जान के पहचान के हिंसा करना किसे कहते हैं ? उत्तर - " जहां पर या जिस पर मैं प्रहार कर रहा हूँ वहाँ या वह त्रस जीव है ।" यह जानते हुए हिंसा करना, जान के पहचान के हिंसा करना कहलाता है। - Jain Education International - प्रश्न - संकल्प करके हिंसा करना किसे कहते हैं ? उत्तर - जैसे "मैं इस मनुष्य को मारूँ, इन सिंह, हिरण आदि का शिकार करूँ, सर्प, चूहे, मच्छर आदि का नाश करूं, अंडे, मछली आदि खाऊँ" ऐसा विचार करके उनकी हिंसा करना संकल्पी हिंसा है । शंका- श्रावक संकल्पी हिंसा का ही त्याग क्यों करता है ? For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004176
Book TitleAavashyak Sutra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNemichand Banthiya, Parasmal Chandaliya
PublisherAkhil Bharatiya Sudharm Jain Sanskruti Rakshak Sangh
Publication Year2007
Total Pages306
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_aavashyak
File Size6 MB
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