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श्रावक आवश्यक सूत्र - अहिंसा अणुव्रत
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बारहवाँ व्रत - अतिथिसंविभाग में जो कोई अतिचार लगा हो तो आलोऊं - १. अचित्त वस्तु सचित्त पर रखी हो, २. अचित्त वस्तु सचित्त से ढकी हो, ३. साधुओं को भिक्षा देने के समय को टाल दिया हो, ४. अपनी वस्तु दूसरों की कही हो, या आप सूझता होते हुए भी दूसरों से दान दिलाया हो, ५. मत्सर (ईर्ष्या) भाव से दान दिया हो, इस प्रकार दिवस सम्बन्धी अतिचार-दोष लगा हो तो तस्स आलोउं (तस्स मिच्छामि दुक्कडं)।
अतिचारों का समुच्चय पाठ इस प्रकार १४ ज्ञान के, ५ समकित के, ७५ बारह व्रतों के और ५ संलेखना के - इन ९९ अतिचारों में से दिवस सम्बन्धी जो कोई अतिचार दोष लगा हो तो तस्स आलोउं (तस्स मिच्छामि दुक्कडं)।
.. बारह व्रतों के अतिचार सहित पाठ
___ 9 अहिंसा अणुव्रत पहला अणुव्रत-थूलाओ पाणाइवायाओ वेरमणं-त्रस जीव बेइंदिय तेइंदिय चउरिदिय पंचिंदिय, जान के पहिचान के संकल्प कर के उसमें सगे-संबन्धी, स्वशरीर के लिए पीडाकारी और सापराधी को छोड़ निरपराधी को हनने की बुद्धि (आकुट्टि की बुद्धि) से हनने का पच्चक्खाण, जावज्जीवाए दुविहं तिविहेणं न करेमि न कारवेमि, मणसा, वयसा, कायसा, ऐसे पहिले व्रत स्थूल-प्राणातिपात विरमण के पंच अइयारा पेयाला जाणियव्वा, न समायरियव्वा तंजहा ते आलोऊं - बंधे, वहे, छविच्छेए, अइभारे, भत्तपाणवोच्छेए, जो मे देवसिओ अइयारो कओ तस्स मिच्छामि दुक्कडं ।
कठिन शब्दार्थ - अणुव्रत - महाव्रत की अपेक्षा छोटा व्रत, थूलाओ - स्थूल, पाणाइवायाओ - प्राणातिपात से, वेरमणं - निवृत्त होना, बेइंदिय - बेइन्द्रिय, तेइंदिय -
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