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श्रावक आवश्यक सूत्र - प्रतिज्ञा सूत्र (करेमि भंते का पाठ)
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ठाएमि देवसिय * णाण-दसण-चरित्ताचरित्त-तव-अइयार चिंतणत्थं न करेमि काउस्सग्गं।
कठिन शब्दार्थ - इच्छामि - इच्छा करता हूँ, णं - अव्यय है, वाक्य अलंकार में आता है, भंते! - हे पूज्य! हे भगवन्!, तुब्भेहिं - आपकी, अब्भणुण्णाए समाणे - आज्ञा मिलने पर, देवसियं - दिवस सम्बन्धी, पडिक्कमणं - प्रतिक्रमण को, ठाएमि - करता हूँ, देवसिय - दिन सम्बन्धी, णाण - ज्ञान, दंसण - दर्शन, चरित्ताचरित्त - चारित्राचारित्र - देशचारित्र, तव - तप, अइयार - अतिचार, चिंतणत्थं - चिन्तन करने के लिए, करेमि - करता हूँ, काउस्सग्गं - कायोत्सर्ग को।
भावार्थ - हे पूज्य ! मैं आपके द्वारा आज्ञा मिलने पर दिवस संबंधी प्रतिक्रमण करता हूँ। दिवस संबंधी ज्ञान, दर्शन, चारित्र (देश) और तप के अतिचार का चिंतन करने के लिए कायोत्सर्ग करता हूँ। .
विवेचन - "इच्छामि णं भंते" का पाठ प्रतिक्रमण की आज्ञा लेने का पाठ है। . इसमें प्रतिक्रमण करने की और ज्ञान दर्शन चारित्र में लगे अतिचारों का चिन्तन करने के लिए कायोत्सर्ग करने की प्रतिज्ञा की जाती है।
चरित्ताचरित - "चारित्राचरित्र" देशव्रत अर्थात् श्रावक के व्रतों को चरित्ताचरित्त कहा है क्योंकि पापों का सर्वथा त्याग करना चारित्र कहलाता है। श्रावक के मिथ्यात्व का तो सर्वथा त्याग होता है और बाकी पापों का त्याग देश अर्थात् अंश रूप से होता है इसलिये इसे चारित्राचारित्र - संयमासंयम कहते हैं। .. . प्रतिज्ञा सूत्र (करेमि भंते का पाठ)
करेमि भंते! सामाइयं सावजं जोगं पच्चक्खामि जाव नियम+ पज्जुवासामि, दुविहं तिविहेणं न करेमि न कारवेमि मणसा वयसा कायसा तस्स भंते! . पडिक्कमामि निंदामि गरिहामि अप्पाणं वोसिरामि। (हरिभद्रीयावश्यक पृष्ठ ४५४)
- पाठान्तर - चिंतवणत्थं
जहाँ जहाँ 'देवसिय' शब्द आवे वहां वहां "देवसिय" के स्थान पर रात्रिक प्रतिक्रमण में "राइय", पाक्षिक में "देवसिय पक्खिय", चातुर्मासिक में "चाउम्मासिय" और सांवत्सरिक में "संवच्छरिय' शब्द बोलना चाहिए ।
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