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. परिशिष्ट द्वितीय
श्रावक आवश्यक सूत्र श्रावक आवश्यक (प्रतिक्रमण) में वर्तमान में निम्न पाठ बोलने की विधि है -
१. नमस्कार सूत्र २. तिक्खुत्तो ३. इच्छाकारेणं ४. तस्स उत्तरी ५. लोगस्स ६. कायोत्सर्ग विशुद्धि का पाठ ७. करेमि भंते ८. नमोत्थुणं ९. इच्छामि णं भंते १०. इच्छामि ठामि ११. आगमे तिविहे १२. दर्शन सम्यक्त्व १३. बारह स्थूल १४. छोटी संलेखना १५. अठारह पापस्थान १६. इच्छामि खमासमणो १७. बारह व्रतों के अतिचार सहित सम्पूर्ण पाठ १८. बड़ी संलेखना. १९. पच्चीस मिथ्यात्व २०. चौदह सम्मूर्छिम स्थान का पाठ २१. चत्तारिमंगलं २२. शय्या सूत्र २३. गोचर चर्या सूत्र २४. काल प्रतिलेखना सूत्र २५. तेतीस बोल २६. निर्ग्रन्थ प्रवचन २७. पाँच पदों की वंदना २८. अनंत चौबिसी आदि दोहे २९. आयरिय उवज्झाय ३०. चौरासी लाख जीव योनि ३१. क्षमापना का पाठ ३२. प्रायश्चित्त का पाठ ३३. पच्चक्खाण का पाठ ३४. प्रतिक्रमण का समुच्चय पाठ।
जो पाठ पूर्व में आवश्यक सूत्र अथवा परिशिष्ट एक में आ चुके हैं उनके अलावा शेष पाठ क्रमशः इस प्रकार है -
इच्छामि णं भंते का पाठ इच्छामि णं भंते के पाठ से गुरुदेव से दिवस संबंधी प्रतिक्रमण करने की आज्ञा मांगी जाती है और दिवस संबंधी ज्ञान, दर्शन, चारित्राचरित्र और तप में लगे अतिचारों का चिंतन करने के लिए-भूलों को समझने के लिए काउस्सग्ग की इच्छा की जाती है।
इच्छामि णं भंते ! तुब्भेहिं अब्भणुण्णाए समाणे देवसियं. पडिक्कमणं
. जहाँ जहाँ 'देवसिय' शब्द आवे वहां वहां देवसियं के स्थान पर रात्रिक प्रतिक्रमण में "राइय", पाक्षिक में 'देवसियं पक्खियं', चातुर्मासिक में 'चाउम्मासियं' और सांवत्सरिक प्रतिक्रमण में "संवच्छरियं" शब्द बोलना चाहिए।
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