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समुच्चय पच्चक्खाण का पाठ
१०१३४० भेद बनते हैं। फिर इनको तीन काल से गुणा करने पर ३०४०२० भेद हो जाते हैं। फिर इनको पंच परमेष्ठी और आत्मा इन छह से गुणा करने पर १८२४१२० प्रकार बनते हैं। कहीं पर पंच परमेष्ठी और आत्मा इन छह के स्थान पर दिन में, रात्रि में, अकेले में अथवा समूह में सोते और जागते इन छह से गुणा किया है । ५६३×१०x२×३×३×३x६ १८२४१२० देवसियादि प्रायश्चित्त का पाठ
श्रमण आवश्यक सूत्र
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देवसिय - पायच्छित्त - विसोहणत्थं करेमि काउस्सगं ।
कठिन शब्दार्थ - देवसिय - दिवस सम्बन्धी, पायच्छित्त प्रायश्चित्त की, विसोहणत्थं- विशुद्धि के लिये, करेमि - करता हूँ, काउस्सग्गं - कायोत्सर्ग । भावार्थ - मैं दिवस संबंधी प्रायश्चित्त की शुद्धि के लिये कायोत्सर्ग करता हूं। समुच्चय पच्चक्रवाण का पाठ
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गंठिसहियं, मुट्ठिसहियं, णमुक्कारसहियं, पोरिसियं, साड्ढपोरिसियं, तिविहं पि, चउविहं पि आहारं असणं, पाणं, खाइमं, साइमं ( अपनी अपनी धारणा प्रमाणे पच्चक्खाण ), अण्णत्थणाभोगेणं, सहसागारेणं, महत्तरागारेणं, सव्वसमाहिवत्तियागारेणं वोसिरामि ।
कठिन शब्दार्थ - गंठिसहियं - गांठ सहित यानी जब तक गांठ बंधी रखू तब तक, मुट्ठिसहि मुट्ठी सहित यानी जब तक मैं मुट्ठी बंद रखू तब तक, णमुक्कारसहियं नमस्कार सूत्र बोल कर सूर्योदय से लेकर एक मुहूर्त ( ४८ मिनिट) तक का त्याग, पोरिसियंएक प्रहर (दिन का चौथा भाग) का त्याग, साइडपोरिसिवं डेढ पोरसिका, वोसिरामि
त्याग करता हूँ ।
भावार्थ - जब तक गांठ बंधी रखूं तब तक या मुट्ठी बंद रखूं तब तक या सूर्योदय से ४८ मिनिट तक या एक पहर तक या डेढ़ पहर तक अशन, पान, खादिम, स्वादिम, इन तीनों या चारों प्रकार के आहारों का आगार रख कर त्याग करता हूँ। आगार हैं- प्रत्याख्यान का उपयोग न रहने से या अकस्मात् कुछ खाने पीने में आ जाय अथवा गुरुजनों की आज्ञा से कुछ खाना पीना पडें तो मेरे आगार है तथा स्वस्थ अवस्था में मेरे यह त्याग है अस्वस्थ होने पर आवश्यक औषधि अनुपान आदि का मेरे आगार है।
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