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आवश्यक सूत्र - परिशिष्ट प्रथम
प्रतिक्रमण का समुच्चय का पाठ
पहला सामायिक, दूसरा चौवीसत्थव, तीसरा वंदना, चौथा प्रतिक्रमण, पाँचवां कायोत्सर्ग छट्ठा प्रत्याख्यान, ये छहों आवश्यक पूर्ण हुए। उनमें अतिक्रम, व्यतिक्रम, अतिचार, अनाचार जानते अनजानते कोई दोष लगा हो तो तथा पाठ का उच्चारण करते समय काना, मात्रा, अनुस्वार, पद, अक्षर, ह्रस्व, दीर्घ, न्यूनाधिक विपरीत कहा हो तो तस्स मिच्छामि दुक्कडं ।
मिथ्यात्व का प्रतिक्रमण, अव्रत का प्रतिक्रमण, प्रमाद का प्रतिक्रमण, कषाय का प्रतिक्रमण, अशुभ योग का प्रतिक्रमण इन पाँच प्रतिक्रमण में से कोई प्रतिक्रमण न किया हो तो तस्स मिच्छामि दुक्कडं ।
शम, संवेग निर्वेद, अनुकम्पा और आस्था, ये व्यवहार समकित के पाँच लक्षण हैं इनको मैं धारण करता हूँ ।
भूतकाल का प्रतिक्रमण, वर्तमान काल का संवर, भविष्यकाल का प्रत्याख्यान इनमें जो कोई अतिचार दोष लगा हो तो तस्स मिच्छामि दुक्कडं ।
देव अरहंत, गुरुनिर्ग्रन्थ, केवलिभाषित दयामय धर्म ये तीन तत्त्व सार, संसार असार, भगवंत महाराज आपका मार्ग सत्य है, सत्य है । थव थुई मंगलम्।
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श्रमण प्रतिक्रमण की विधि
क्षेत्र शुद्धि - सर्व प्रथम गुरुजनों को वन्दना करके दो चतुर्विंशतिस्तव करना । पहले में 'दौ इच्छाकारेणं' एवं दूसरे में 'चार लोगस्स' का कायोत्सर्ग करना ।
क्षेत्र शुद्धि - के पाठों के नाम व क्रम इस प्रकार है नमस्कार सूत्र, इच्छाकारेणं, तस्स उत्तरी, ध्यान दो इच्छाकारेणं, कायोत्सर्ग विशुद्धि का पाठ, लोगस्स और दो नमोत्थुणं । दूसरे में - इच्छाकारेणं, तस्स उत्तरी, ध्यान चार लोगस्स, कायोत्सर्ग विशुद्धि का पाठ, लोगस्स और दो नमोत्थुणं ।
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