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आवश्यक सूत्र - परिशिष्ट प्रथम
चार मूल सूत्र - उत्तराध्ययन, दशवैकालिक, नन्दीसूत्र और अनुयोगद्वार सूत्र।
चार छेद सूत्र - दशाश्रुतस्कन्ध, बृहत्कल्प, व्यवहार सूत्र और निशीथ सूत्र और बत्तीसवाँ आवश्यक सूत्र तथा अनेक ग्रंथों के जानकार सात नय, चार निक्षेप, निश्चय, व्यवहार चार प्रमाण आदि स्वमत तथा अन्यमत के जानकार मनुष्य या देवता कोई भी विवाद में जिनको छलने (जीतने) में समर्थ नहीं जिन नहीं पण जिन सरीखे हैं केवली नहीं पण केवली सरीखे हैं।
ऐसे उपाध्यायजी महाराज, मिथ्यात्वरूप अन्धकार के मेटनहार, समकित रूप उद्योत के करनहार, धर्म से डिगते प्राणी को स्थिर करे, सारए, वारए, धारए, इत्यादि अनेक गुण करके सहित हैं।
ऐसे श्री उपाध्यायजी महाराज आपकी दिवस सम्बन्धी अविनय आशातना की हो तो हे उपाध्यायजी महाराज! मेरा अपराध क्षमा करिये। हाथ जोड़, मान मोड़, शीश नमाकर तिक्खुत्तो के पाठ से १००८ बार वन्दना नमस्कार करता हूँ।
तिक्खुत्तो आयाहिणं पयाहिणं करेमि वंदामि णमंसामि सक्कारेमि सम्माणेमि कल्लाणं मंगलं देवयं चेइयं पज्जुवासामि मत्थएण वंदामि।
आप मांगलिक हो, उत्तम हो, हे स्वामिन् ! हे नाथ! आपका इस भव, परभव, भवभव में सदाकाल शरण हो।
विवेचन - उपाध्याय महाराज के २५ गुणों का उल्लेख आगमों में नहीं है। कोई कोई ११ अंग एवं १४ पूर्व कुल २५, इन्हें उपाध्याय के २५ गुण कहते हैं। एक और प्रकार का उल्लेख ऊपर (पाठ में) किया गया है। यथा - ग्यारह अंग, बारह उपांग, चरणसत्तरी, करणसत्तरी, ये पच्चीस।
चरणसत्तरी के ७० भेद (मूलगुण) वय समण-धम्म संजम वेयावच्चं च बंभगुत्तीओ। णाणाइतीय तव कोह, णिग्गहाइ चरणमेयं॥
५ महाव्रत, १०. यतिधर्म, १७ प्रकार का संजम, १० प्रकार की वैयावृत्य, ९ वाड 'ब्रह्मचर्य की, ३ ज्ञानादि (तीन) रत्न, १२ प्रकार का तप, ४ कषाय का निग्रह इस प्रकार ये कुल ७० भेद हुए। (प्रवचन सारोद्धार द्वार ६६-६७).
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