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________________ श्रमण आवश्यक सूत्र - पाँच पदों की वंदना १९३ ४. वचन सम्पदा ५. वाचना सम्पदा ६. मति सम्पदा ७. प्रयोगमति सम्पदा ८. संग्रह परिज्ञा सम्पदा सहित हैं। । ____ ऐसे आचार्यजी नहाराज न्यायपक्षी, भद्रिक परिणामी, परम पूज्य कल्पनीय-अचित्त वस्तु के ग्रहणहार, सचित्त के त्यागी, वैरागी, महागुणी, गुणों के अनुरागी सौभागी हैं। ऐसे आचार्यजी महाराज आपकी दिवस सम्बन्धी अविनय-आशातना की हो, तो बारबार हे आचार्यजी महाराज मेरा अपराध क्षमा करिये। हाथ जोड़, मान मोड़, शीश नमाकर तिक्खुत्तो के पाठ से १००८ बार वन्दना नमस्कार करता हूँ। तिक्खुत्तो आयाहिणं पयाहिणं करेमि वंदामि णमंसामि सक्कारेमि सम्मामि कल्लाणं मंगलं देवयं चेइयं पज्जुवासामि मत्थएण वंदामि। ... आप मांगलिक हो, उत्तम हो हे स्वामिन्! हे नाथ! आपका इस भव, परभव, भवभव में सदाकाल शरण हो। . विवेचन - आचार्य महाराज के ३६ गुणों का उल्लेख ग्रन्थों में भिन्न-भिन्न प्रकार से आया हैं। उनमें से एक प्रकार का उल्लेख ऊपर किया गया है। दशाश्रुतस्कंध में आचार्य महाराज की आठ सम्पदाओं का उल्लेख है। प्रत्येक सम्पदा के ४-४ भेद होने से ३२ भेद एवं शिष्यों के प्रति चार कर्त्तव्य इस प्रकार भी आचार्य के ३६ गुण कोई-कोई गिनते हैं। ४. चौथे पद श्री उपाध्यायजी महाराज ग्यारह अंग, बारह उपांग, चरणसत्तरी, करणसत्तरी इन पच्चीस गुण करने सहित। ग्यारह अंग का पाठ अर्थ सहित सम्पूर्ण जाने, १४ पूर्व के पाठक और निम्नोक्त बत्तीस सूत्रों के जानकार हैं - ग्यारह अंग - आचाराङ्ग, सूयगडाङ्ग, ठाणाङ्ग, समवायाङ्ग, भगवती (विवाहपण्णत्ति), ज्ञाताधर्मकथा, उपासकदसा, अंतगडदसा, अणुत्तरोववाइय, प्रश्नव्याकरण, विपाक सूत्र। ... बारह उपाङ्ग - उववाई, रायप्पसेणी, जीवाजीवाभिगम, पण्णवणा, जम्बूदीवपण्णत्ति, चंदपण्णत्ति, सूरपण्णत्ति, निरयावलियां, कप्पवडंसिया,. पुष्फिया, पुप्फचूलिया, वण्हिदसा। Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004176
Book TitleAavashyak Sutra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNemichand Banthiya, Parasmal Chandaliya
PublisherAkhil Bharatiya Sudharm Jain Sanskruti Rakshak Sangh
Publication Year2007
Total Pages306
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_aavashyak
File Size6 MB
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