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आवश्यक सूत्र - परिशिष्ट प्रथम
४. अतीर्थंकर सिद्ध- जिन्होंने तीर्थंकर की पदवी प्राप्त न करके मोक्ष प्राप्त किया। जैसे गौतम अनगार आदि ।
५. स्वयंबुद्ध सिद्ध - बिना उपदेश के पूर्व जन्म के संस्कार जागृत होने से जिन्हें ज्ञान हुआ और सिद्ध हुए। जैसे कपिल केवली आदि ।
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६. प्रत्येक बुद्ध सिद्ध - किसी पदार्थ के निमित्त से बोध प्राप्त हुआ और केवलज्ञान प्राप्त कर मोक्ष प्राप्त किया । जैसे करकण्डु राजा ।
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७. बुद्ध बोधित सिद्ध - गुरु के उपदेश से ज्ञानी होकर जिन्होंने मुक्ति प्राप्त की। जैसे जम्बूस्वामी |
८. स्त्रीलिङ्ग सिद्ध - जैसे चन्दनबाला ।
९. पुरुषलिङ्ग सिद्ध - जैसे अर्जुनमाली ।
१०. नपुंसकलिङ्ग सिद्ध भगवती सूत्र शतक २६ उद्देशक २ के आधार से पुरुष नपुंसक (जन्म से) केवलज्ञान प्राप्त कर सिद्ध हो सकता है। जैसे गांगेय अनगार आदि । ११. स्वलिङ्ग सिद्ध - रजोहरण, मुखवस्त्रिका आदि वेषों में जिन्होंने मुक्ति पाई। जैसे जैन साधु ।
१२. अन्यलिङ्ग सिद्ध - जैन वेष से अन्य संन्यासी आदि के वेषों में भाव संयम द्वारा केवल ज्ञान उपार्जित कर वेष परिवर्तन करने जितना समय न होने पर जिन्होंने मुक्ति पाई । जैसे वल्कलचीरी ।
१३. गृहस्थलिङ्ग सिद्ध - गृहस्थ के वेश में जिन्होंने भाव संयम प्राप्त कर केवलज्ञान प्राप्त कर मुक्ति प्राप्त की। जैसे मरुदेवी माता आदि ।
१४. एक सिद्ध - एक समय में एक ही जीव मोक्ष में जावे। जैसे जम्बूस्वामी आदि । १५. अनेक सिद्ध - एक समय में अनेक जीव मोक्ष में जावे। एक समय में उत्कृष्ट १०८ तक मोक्ष में जा सकते हैं। जैसे ऋषभदेव स्वामी आदि। (प्रज्ञापना सूत्र पद १)
३. तीसरे पद श्री आचार्यजी महाराज पांच महाव्रत पाले, पांच आचार पाले, पांच इन्द्रिय जीते, चार कषाय टाले, नववाड़ सहित शुद्ध ब्रह्मचर्य पाले, पांच समिति, तीन गुप्ति शुद्ध आराधे । ये छत्तीस गुण करके विराजमान । आठ सम्पदा १. आचार सम्पदा २. श्रुत सम्पदा ३. शरीर सम्पदा
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